आमुख
“साहित्यिक सफर का एक दशक” पुस्तक की रचना करने का मेरा उद्देश्य
था,
जो कुछ मैंने एक दशक के भीतर इधर-उधर लिखा और जो कुछ इधर-उधर प्रकाशित हुआ, चाहे
भूमिका, समीक्षा
या मूल्यांकन, चाहे संस्मरण, चाहे साक्षात्कार अथवा बड़े-बड़े लेखकों
के जीवन संबन्धित आलेखों के रूप में क्यों न हो, उन सभी विधाओं को एक साथ जोड़कर माला के
रूप में पिरोना। मैंने सन 2014-15 में जिन लेखकों की कृतियों का अध्ययन किया और
जिनके लेखन, संस्थानों, व्यक्तित्व या साहित्यिक घटनावलियों ने
मुझे प्रभावित किया, उन विषयों या स्मृतियों पर मैंने कलम
चलाने का क्षुद्र प्रयास किया है। ये सारी रचनाएँ वेब पत्रिकाओं में सृजनगाथा, युगमानस, रचनाकार
तथा मुद्रित पत्रिकाओं में रायपुर से प्रकाशित होने वाली गिरीश पंकज की ‘सद्भाव
दर्पण’, मायामृग
के बोधि-प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘उत्पल’ में प्रकाशित होकर हिन्दी पाठकों का
बहुत हद तक ध्यान आकृष्ट किया है। भारत सरकार के भूतपूर्व कोल-सेक्रेटरी श्री
प्रकाश चन्द्र पारख की बहुचर्चित आत्मकथात्मक पुस्तक “क्रूसेडर या कान्स्पिरेटर?”
का अँग्रेजी से तथा स्वर्गीय जगदीश मोहंती के महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड के ईबघाटी
कोयलांचल पर आधारित ओडिया उपन्यास “निज-निज पानीपत” का मैंने हिन्दी में अनुवाद कर उसकी
रचना-प्रक्रिया पर प्रकाश डाला है।
इन लेखकों के जीवनशैली ने मुझे गहराई से
प्रभावित किया है, खासकर श्री प्रकाश चन्द्र पारख की ईमानदार छबि ने। अन्य
कृतियों में नन्द चतुर्वेदी द्वारा संपादित ‘शतायु लोहिया’,
नन्द भारद्वाज के
उपन्यास ‘आखे
खुलता रास्ता’ उद्भ्रांत की ‘मुठभेड़’, असंग घोष की ‘हम गवाही देंगे’,
डॉ॰ विमला भण्डारी की
‘कारगिल
की घाटी’,
गिरीश पंकज की ‘एक गाय की आत्मकथा’, डॉ. प्रभापंत के काव्य-संग्रह ‘तेरा
तुझको अर्पण’, राजेश श्रीवास्तव के कहानी-संग्रह ‘इच्छाधारी लड़की’ तथा आशा पाण्डेय ओझा के काव्य-संग्रह
“वक्त की शाख से” के गहन अध्ययन ने मुझे वरिष्ठ लेखकों से लेकर समकालीन ख्याति-लब्ध
रचनाकारों की अलग-अलग मानसिक पृष्ठभूमि वाले कथानकों और अंतर्वस्तु को समझने तथा
परखने का अवसर प्रदान किया। इसके अतिरिक्त, कुछ बड़े साहित्यकारों में डॉ॰ महेंद्र भटनागर, डॉ॰
विमला भण्डारी, माओस्ते तुंग, लुशून के उज्ज्वल व्यक्तित्वों ने इस
तरह प्रभावित किया है कि मैंने उनका मेरे पास उपलब्ध समूचा साहित्य को मैंने डाला।
जिसका मैंने भाग-2 में मूल्यांकन शीर्षक के अंतर्गत विवेचन किया है।
संस्मरण भाग में सलूम्बर की सलिला संस्था
द्वारा आयोजित स्वप्नदर्शी बाल साहित्यकार
सम्मेलन,पाली
की त्रिसुगंधी संस्थान, भुवनेश्वर के सर्वभाषा कवि सम्मेलन, थाइलेंड
की पहली विदेश यात्रा, कोटा में अध्ययनरत मेरे बच्चों पर
आधारित संस्मरण के अतिरिक्त जोधपुर में अध्ययन करते समय देत भीकमदास परिहार शिक्षा
सेवा सदन के अध्यक्ष जगदीश सिंह परिहार, रांची विश्वविद्यालय के राष्ट्रपति
पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ॰ दिनेश्वर प्रसाद तथा सारला पुरस्कार
से सम्मानित ओडिया भाषा के प्रख्यात लेखक जगदीश मोहंती से जुड़ी हुई यादों को
शब्दों के आवरण में समेटने का प्रयास किया है।
‘साक्षात्कार’ भाग में मैंने ओडिया और अँग्रेजी भाषा
के विशिष्ट साहित्यकार व समीक्षक डॉ॰ प्रसन्न कुमार बराल, ओडिया लेखिका तथा अँग्रेजी की
अनुवादिका मोनालिसा जेना तथा हमारी कंपनी महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड के भूतपूर्व
अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक आईआईटी, खड़गपुर से खनन अभियांत्रिकी से उत्तीर्ण
श्री अनिमेष नन्दन सहाय के मेरे द्वारा लिए गए साक्षात्कारों को शामिल किया गया
है। राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पटल पर महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड की छबि को
अभ्रंकष ऊंचाई तक पहुंचाने वाले अनिमेष नन्दन सहाय सेवानिवृति के समय किया गया
अभिनंदन पत्र भी जोड़ा गया है। इतना कुछ
होने के बावजूद मुझे यह ग्रंथ अधूरा-सा लग रहा था, अगर मैं इसमें मेरे चेहते ओडिया लेखकों
में सीताकान्त महापात्र तथा सरोजिनी साहू को नहीं जोड़ लेता। इस हेतु उन दोनों के
जीवन प्रसंगों को अनुवाद के माध्यम से शामिल किया है। अंत में, मुझे
आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि मेरी यह पुस्तक आपको अवश्य पसंद आएगी।
पाठकों की प्रतिक्रिया का बेसब्री से मुझे इंतजार रहेगा।
दिनेश कुमार
माली
तालचेर, ओड़िशा
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