27॰ मोनालिसा जेना, प्रसिद्ध ओड़िया कवयित्री व अनुवादक
प्रश्न 1. अपने जन्म और माताजी-पिताजी के बारे में कुछ प्रकाश डालें?
उत्तर :- मेरे पिताजी स्वर्गीय लाल बिहारी जेना और माताजी श्रीमती महाश्वेता चौधरी हैं, जो भुवनेश्वर के पास स्थित खुर्दा नामक एक छोटे कस्बे में लेक्चरर थे। मेरी माँ अब सेवानिवृत्त है । मेरे दो भाई बहन है। मेरे नाना, स्वर्गीय विपिन बिहारी चौधरी,एक प्रख्यात चित्रकार थे और वे पहले मूक और बधिर कलाकार थे, जिनकी उपस्थिति लंदन के प्रतिष्ठित कला के रॉयल कॉलेज में अनुभव की गई। लेकिन उन्होने कला के अपने जुनून को त्यागकर महात्मा गांधी के कहने पर, देश के मूक और बधिर समुदायों के उत्थान के लिए काम किया। वे फकीर मोहन सेनापति (आधुनिक ओड़िया साहित्य के पिता) के पोते थे। मैं इस वंश में पैदा होने के लिए धन्य हूँ और ओडिशा की कला, संस्कृति को राष्ट्रीय स्तर पर शोहरत दिलाने के लिए कर्तव्य-भावना को अपने भीतर अनुभव कर रही हूँ।
प्रश्न 2. जब आपने लेखन-कर्म शुरू किया, तब आपने अपनी अभिव्यक्ति के लिए किस शैली को अनुकूल पाया?
उत्तर:- किसी भी प्रकार की कविता मुझे तुरंत आकर्षित करती हैं। लेकिन एक अच्छी कविता मेरे साथ हमेशा रहती है। काव्य, जो अपने आप में एक रहस्य है, जिसमें एक मिस्टिक अपील होती है,अपनी गुणवत्ता के लिए पूरी तरह से आपके दिलो-दिमाग पर छा जाती है।अन्यथा कई भावनाओं को जो अभिव्यक्त नहीं की जा सकती, वे कागज पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाती है। चूंकि काव्य आंतरिक अशांति, संघर्ष, लालसा और दुख को दर्शाता है, इसलिए इसमें मानवीय भावनाओं को साथ जोड़ने की क्षमता है। मुझे लगता है कि कविता मेरी आत्मा में एक ताजे झरने की तरह बहती है, जब यह इतना संवेगशील हो जाता है कि नियंत्रण से परे हो जाता है, तब यह सार्वभौमिक हो जाता है। मैंने कविता को एक बच्चे की तरह प्यार किया हैं। जो कुछ दृढ़ सहज भावनाओं द्वारा अंतस से बाहर निकलता है ,मेरी कविताओं में जगह पाते हैं। ये विचार मैं गद्य या निबंध में प्रकट नहीं कर सकती हूँ, लेकिन मैं मानती हूँ कि एक महाकाव्य कविता का प्रकाशन मेरी क्षमता से परे है। मेरी कविताएं एक तरह से विशेष समय पर उभरी भावनाओं के साथ जोखिम भरे कार्य का एक प्रतिबिंब है। मैं अपनी कविताओं को क्राफ्ट नहीं मानती, हालांकि कला भी इस आधुनिक युग में तकनीकी कार्य है।
मैंने अपनी पहली कविता लिखी, जब बांग्लादेश का युद्ध हुआ था। वह कविता लयबद्ध, प्रेरक और मातृभूमि के लिए प्यार से प्रेरित थी। लेकिन मैं मानवीय भावनाओं और प्रकृति के सौंदर्य की ओर खिंची चली गई क्योंकि मैं एक छोटे से गाँव में पली बड़ी हूँ। मेरा जीवन सरल था,अतः मेरे लिए स्वार्थी, जटिल, अन्यायपूर्ण जीवन के साथ समायोजित होना न केवल मुश्किल, वरन लगभग असंभव है ।
प्रश्न 3. आप अपने साहित्यिक प्रयासों के बारे में कृपया विस्तार से बताएं?
उत्तर :- अब तक मेरी प्रकाशित 16 पुस्तकें है। उनमें से सात असमिया से ओडिया में अनूदित हैं और ओड़िया में प्रकाशित तीन कविता संग्रह निसर्ग ध्वनि, ई सबू ध्रुबमुहूर्त और नक्षत्र देवी है। ओड़िया में मेरा एक कहानी-संग्रह ‘इन्द्र मालतीर शोक’ और कवि रमाकांत रथ पर एक जीवनी भी प्रकाशित हुई है ।
मेरी अंग्रेजी में भी तीन किताबें प्रकाशित हुई हैं - मेरे नाना का एक मोनोग्राफ 'Artists of a Mute Worlds', 'लघु कहानियों का अनुवाद' तथा `विश्व पत्रकारिता में महिलाएं' नामक पुस्तक का सम्पादन। इसके अलावा, समकालीन लेखकों की अंग्रेजी में मेरे द्वारा अनुवादित कई लघु कथाएँ कई 'लेखकों के संग्रह में शामिल हैं।
मैं नियमित रूप से कविताएँ , कहानियाँ , फीचर और कॉलम लिखती हूँ, जो ओड़िया भाषा की मुख्य पत्रिकाओं में प्रकाशित होती हैं। मेरा कार्य भारतीय साहित्य, डिस्कवर इंडिया, स्वागत, जेट विंग्स, वूमेन एरा, अलाइव और अन्य पत्रिकाओं में भी दिखाई देता है। मैंने विषय 'ओड़िशा और असम के समकालीन रोमांटिक कविता का तुलनात्मक अध्ययन' पर संस्कृति विभाग,नई दिल्ली से सफलतापूर्वक अपनी वरिष्ठ फैलोशिप पूरी की है और अब अनभ्यस्त साहित्यिक अनुसंधान परियोजनाओं पर काम कर रही हूँ।
प्रश्न 4. ‘निसर्ग ध्वनि’ कविता-संग्रह में किस प्रकार की कविताएं शामिल की गई हैं?
उत्तर:- निसर्ग ध्वनि मेरी कविताओं का पहला संग्रह है, जो 2004 में प्रकाशित हुआ। निसर्ग का अर्थ प्रकृति और ध्वनि का अर्थ संगीत से लिया गया है। मेरी कविताओं की यात्रा नीरवता से कोलाहल तक होती हैं। उनमें अलगाव की भावना और विरोधाभासों के एक संश्लेषण की उत्तम प्रस्तुति है। यह मेरा पहला संग्रह था और यह मेरे लिए सुदूर रहने वाले लोगों की संवेदनाओं के लिए एक खिड़की खोलने का इरादा था। यह पाठकों को तय करना है कि मैं इसमें कितनी सफल रही। कविताओं में घने जंगल में प्रपात,आदिवासियों की जमीन में घाट-सड़कों से लेकर भोपाल त्रासदी शामिलहैं।
मेरा कविताओं की दूसरी पुस्तक ‘ऐ सबू ध्रुबमुहूर्त’ में और अधिक स्पष्ट तरीके में रोमांटिक भावों को दर्शाया गया है। ये कविताएं शारीरिक और आध्यात्मिक दुनिया के बीच संबंधों पर आधारित हैं। प्यार, कोमलता के अव्यवस्थित धरातल जहां जीवन के तुच्छ मुद्दों को माध्यम बनाया गया है, गर्भपात और महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के कुछ विषयों को इसमें लिया गया हैं। हालांकि इन कविताओं में आसानी से कामुकता के भाव दिखाई दे सकते हैं, मगर वे परिचित शारीरिक स्तर के लिए बाध्य नहीं हैं। शायद उनमें मेरी अपनी गैर- परंपरागत इच्छाएं प्रतिबिंबित हुई हैं। आप कह सकते हैं यह इच्छा-पूर्ति का एक माध्यम है।
हाल ही में प्रकाशित, मेरी तीसरी पुस्तक ‘नक्षत्र देवी’ मेरे अपने दृष्टिकोण को परिभाषित करती है और एक तरह से यह स्व-घोषणा का एक प्रकार है। प्यार जिसने अपना अर्थ खो दिया हैनतथा बदलते रिश्ते इन कविताओं का मूलभूत आधार हैं। यहाँ, भले ही तकनीक विकसित हो, सटीक हो, लेकिन कहने को कुछ नहीं है। हो सकता है, इनमें आपको संवाद कम लगे क्योंकि मैंने अपने जीवन के स्पष्ट क्षणों तथा विशिष्ट घटनाओं की नुकीली व्याख्या की है। इससे जिज्ञासा पैदा होती है। मैं अपने आप को सिराज जैसे ऐतिहासिक पात्रों के साथ वार्तालाप करती हुई पाती हूँ, मैंने मणिपुर, शिलांग के उत्तेजक रोमांस को और मेरी अपनी “कालिजाई”, एक युवा दुल्हन जो चिल्का झील में एक तूफानी शाम में आत्महत्या कर लेती है, में महिलाओं के दर्द को महसूस किया है ।
प्रश्न 5 आपकी कविताओं की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर:- यह जवाब देना मुश्किल है। सच कहूँ, मैंने अपनी कविताओं का कभी विश्लेषण नहीं किया है कि उनमें खास क्या हैं। अच्छा रहेगा पाठक इसे स्वयं खोजें। हालांकि, मैं अपने भीतर दमघोटु नीरवता,निराशा और क्षणभंगुर-प्यार को अनुभव करती हूँ। मेरी कविताएं निश्चित रूप से इन में से कुछ को प्रतिबिंबित करती हैं, लेकिन मैं नहीं जानती कि यह कहाँ तक व्यापक सत्य है। मेरी कविताओं का सार है “मैं, मेरापन”। कई रंग के रिश्ते और कई अलग गहराइयाँ- कुछ उन्मादपूर्ण तीव्रता, कुछ बेहद दर्दनाक क्षण-जो मुझे तोड़ देते हैं। आज साहित्य एक चौराहे पर खड़ा है। सही रास्ता कौन-सा है? मानवीय मूल्यों का? मूल्यों का अलग अर्थ है। इस संदर्भ में, मुझे अपनी जड़ों की तलाश है और उन लोगों के साथ जुड़े रहने का प्रयास करती हूँ। संघर्ष होने के लिए बाध्य हैं और वे सब ईमानदारी से मेरे लेखन में परिलक्षित होते हैं। मैं कविताओं के एक भविष्य की तलाश करती हूँ, जरूरी नहीं है कि वह कविता लिखने के स्थापित मापदंडों के अनुरूप हो। प्रकृति और संवेदनाओं की एक समरसता है जैसे बारिश की बूंद तथा आँसू की बूंद, चांदनी और प्यार में होने की अनुभूति,मतभेद और विशिष्टताएं इत्यादि अपने आप को अभिव्यक्त करने के लिए आवश्यक है। मैं अपनी कविता के माध्यम से कुछ चीजें याद करने और कुछ गहरी संवेदनाओं को भूलने के लिए लिखती हूँ। मेरा मानना है कि शब्द एक कीमियागर की तरह अभिनय करते हैं ।
हालांकि यह मैंने जानबूझकर नहीं किया था, मैंने 'बढ़ते अनाज' के बारे में लिखा जो कृषि-संस्कृति को प्रतिबिंबित करती है, योद्धा सिराज के बारे में,कालिजाई जैसे मिथक पात्रों के बारे में लिखा। मेरी कविताओं में विविधता है। हालांकि मुख्य रूप से मैं प्यार की भावनाओं के बारे में लिखने का प्रयास करती हूँ, भले ही, वे भारी प्रतीकों से भरी हुई हो। मैं अपने लेखन-कर्म में एक सौंदर्य और नाजुक स्पर्श लाने की कोशिश करती हूँ। ज्यादातर मेरी कविताएं बेहद निजी हैं। वे मेरे अपने 'स्व' की आत्म-घोषणाएं हैं, जो मेरे मन की बात कहने की हिम्मत रखते हैं और एक मुक्त-आत्मा का जीवन जीती है, भले ही बाहरी जिम्मेदारियों के साथ प्रथागत बेड़ियों में बंधी हुई हो।
प्रश्न 6. रोमांटिक कविता से आपका क्या मतलब है? वर्ड्वर्थ की रोमांटिक कविता की अवधारणा से आपकी कविताएं कैसे अलग हैं?
उत्तर:- मुझे विश्वास है, मेरी कविताएं पारंपरिक ढंग से लिखी जाने वाली कविताओं के तरीकों के अनुसरण के लिए बाध्य नहीं है। मैं एक गैर कंफर्मिस्ट हूँ। मैं अपने अहंकार के साथ-साथ दर्द को लेती हूँ। क्या रोमांटिसिज़्म दर्द की एक अवधारणा नहीं है? मुझे लगता है कि मैं दोनों का मिश्रण हूँ। मैं भी प्रकृति और उसकी नीरवता, करुणा की गुप्त भाषा की ओर खींची चली जाती हूँ। मैं अपने को प्रकृति के साथ जोड़कर 'पाठकों के दिलों को छूने की कोशिश करती हूँ। वर्ड-वर्थ रोमांटिक युग के एक उत्कृष्ट कवि है,लेकिन मैं उनकी कविताओं से प्रभावित नहीं हूँ। क्लासिक कविता-लेखन के लिए अधिक कुशलता, अधिक से अधिक एकाग्रता और गहरी अंतर्दृष्टि की आवश्यकता है, जिसकी कमी को स्वीकार करने वाली मैं पहली कवियत्री हूंगी। मैं भी आज के पैटर्न-लोकप्रिय लेखन, जिसे सबसे अच्छे सामाजिक प्रतिबिंब की पत्रकारिता कहा जा सकता है, में नहीं फँस सकती हूँ। मुझे लगता है, मुझमें आवश्यक कौशल, गहराई और क्षमताओं की कमी है। जब मैं अपने आप को किसी अन्य तरीके से व्यक्त नहीं कर सकती, तब लिखती हूँ। काव्य इतना आसान नहीं है, यह भावनाओं, विषयों, सत्य और दोनों आंतरिक और बाहरी दुनिया में संघर्ष का विवरण होता है। कवि के रूप में जाने जाने के लिए किसी को भी एक काव्य परंपरा की क्लासिक विरासत का अध्ययन करना जरूरी है जिसे मैं अभी कर रही हूँ।
प्रश्न 7. क्या प्यार आपकी कविता का सार है? यदि ऐसा है, तो आप मानव प्रेम के माध्यम से क्या कल्पना करती है ? इस भौतिकवादी दुनिया में प्यार कैसे जीवित रह सकता है?
उत्तर:- काव्य शुरू से ही मानव प्रेम का बोझ उठाता है। लघु कथाएँ या निबंध प्यार पर इस तरह निर्भर नहीं करते जिस तरह कविता। मैं मानव प्रेम की अमरता की घोषणा करने के लिए बाध्य महसूस कर रही हूँ। मैं (मोनालिसा- मंत्र से तुम्हारा क्या मतलब है, इस पैरा फिर से लिखना) अपने पूर्ववर्तियों की तरह मंत्र नहीं लिख सकती हूँ। अगर मैं अस्सी साल जीऊँ, तब भी नहीं लिख सकती। प्यार जिंदा रहता है और कि केवल यही एक चीज है कि एक भौतिकवादी दुनिया में जीवित है। बिना किसी मिलावट के इसे रखें, यही सार्वभौमिक जीवन है।
प्रश्न 8. “इन्द्रमालतीर शोक” में आपने कैसी कहानियाँ लिखी हैं ?
उत्तर:- “इन्द्रमालतीर शोक” मेरा छोटी कहानियों का एकमात्र संग्रह है। मेरी कहानियां मेरी कविताओं की पूरक हैं क्योंकि कहानियाँ कविताओं की तुलना में एक बहुत व्यापक क्षेत्र को कवर कर सकती हैं। जो कविताओं में नहीं कहा जा सकता है, वह मेरी कहानियों में हैं या उस तरफ सबसे अच्छा संकेत दिया जा सकता है।
मेरा मानना है कि मानवता, उदारता, और सहानुभूति जन्मजात मानवीय मूल्य हैं और मेरी कहानियों में उनकी झलक मिलती है। मुझे लगता है मेरी कहानियां पाठकों के साथ जल्दी से जुड़ जाती है। लेकिन कहानी लिखने के लिए धैर्य और तैयारी के अतिरिक्त विभिन्न कौशल और क्षमताओं की आवश्यकता होती है। चूंकि मैंने अनछुए पहलुओं को लिखा है,इसलिए मेरी विचार-प्रक्रिया,उनकी अभिव्यक्ति और तकनीक समकालीन लेखकों से अलग तरीकों की मांग करती हैं। लेकिन मैं यहाँ असहाय हूँ।
मेरी कहानियों में कई नए आयाम हैं, खासकर जब वे हमारे समाज की समकालीन जीवन-शैली के हर क्षेत्र में खिसकते मूल्यों को दर्शाती हैं। जब मैं लिखती हूँ तो मैं अपनी राय थोपने की कोशिश नहीं करती हूँ। मेरी कहानियां मेरी कविताओं से पूरी तरह अलग हैं। मेरी कविता में 'मैं, मेरा”को' केंद्र चरण में रखती हूँ और कहानियों में 'उनके बारे में' बात करती हूँ। नागाफ़ाक़ी,पथर जो एक ताजा सपना बन गया और 14 फरवरी बहुत प्रशंसित कहानियाँ है, जो हमारे उच्च समाज की गुप्त दुनिया की विरोधाभासी अपेक्षाओं, प्यार की गहराई, गद्दारों, और नकार देने पर आधारित हैं। मैं यह कबूल करती हूँ कि ऐसे अच्छे और बुरे पात्रों से वास्तव में मेरा परिचय हुआ। न तो कविता में और न ही मेरी कल्पना में ऐसा कोई झूठ है।
प्रश्न 9. क्या आपने अपने आलेखों में जंगल या पर्यावरण के मुद्दों को उठाने की चेष्टा की हैं ? अत्यधिक शहरी और तथाकथित सभ्य लोगों में प्रकृति-प्रेम कैसे उत्पन्न किया जा सकता है? आप किन उपायों के बारे में सुझाव देना चाहेगी?
उत्तर:- मैंने अपने आलेखों में किसी भी वन या पर्यावरण से सम्बंधित मुद्दों को नहीं उठाया है। जब मैंने अंग्रेजी में लेख लिखे, मेरा इरादा था हमारे पास पहले से ही मौजूद जंगलों के धन से प्राप्त सुख-सुविधाओं के बारे में शहरी लोगों पढ़ें। वास्तव में, कई ऐसे भी है, जिन्हें यह पता नहीं है कि सिमिलिपाल उड़ीसा में है, बिहार में नहीं है। उन्हें सूचित करना आवश्यक था। यदि आपको अपनी वन संपदा और इसके महत्व के बारे में पता है कि आप उनसे संबन्धित मुद्दों को उठाकर उनकी रक्षा कर सकते हैं। ओडिशा में 18 आरक्षित वन-अभयारण्य है और, हाल ही में अब तक, इन्हें जंगलों में गिना जाता हैं। ओडिशा के अभयारण्यों के बारे में यह बात अद्वितीय है कि उनमें सम्पूर्ण वन्य जीवन, रॉयल बंगाल टाइगर्स से हाथी, चीतल से मगरमच्छ और समुद्री कछुए, दोनों स्थानिक और लुप्तप्राय प्रजातियों के पक्षियों की अलग-अलग किस्में पाई जाती है। ऑर्किड समस्त ओडिशा की पूंजी हैं। अब दूसरी तरफ आते हैं। हमें सदियों पुराने साल वृक्षों से भरे जंगलों की रक्षा क्यों करनी चाहिए? अगर हम जानते हैं कि सिमिलिपाल पश्चिमी पहाड़ रिज पर स्थित है और यह उड़ीसा में रेगिस्तानी हवाओं को प्रवेश करने से रोकता है, तो हम क्यों अपने हरे जंगलों को नष्ट करेंगें। हर दिन लकड़ी के ट्रकों की जंगल के वन अधिकारियों के साथ मिलीभगत से बाहर तस्करी हो रही है। एक पत्रकार के रूप में, मैं अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करती हूँ। लेकिन मैं इन मुद्दों को नहीं उठाती, क्योंकि यह एक जीवन भर का कार्य है, जिसके लिए मैं प्रतिबद्ध होने में सक्षम नहीं हूँ। लेकिन मुद्दे मुझे काफी प्रभावित करते हैं और मैं उन पर आधारित एक उपन्यास लिख रही हूँ।
प्रश्न 10. हमें ओड़िया साहित्य में महिलाओं के चित्रण के बारे में कुछ बताएं?
उत्तर:- सभी दूसरी दुनियाओं की तरह, महिलाओं की दुनिया भी स्वाभाविक तौर पर बहुआयमी है। विभिन्न महिला लेखिकाओं ने इस दुनिया की लैंगिक वास्तविकता पर अलग-अलग विचार प्रकट किए हैं। हालांकि, उनके लेखन में एक सांझे दर्द, पीड़ा और आकांक्षा का पता लगाना संभव है। मैं एक साहित्यिक विचारक नहीं हूँ और न ही मैं ओडिया साहित्य की विशेषज्ञ हूँ। बदलते समाज में अधिकांश महिलाओं में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। राजनीतिक समर्थन, शिक्षा, वित्तीय अधिकार के बावजूद महिलाओं का उत्पीड़न जारी है। पुरी की विधवाएं, जो असामयिक और अल्प भोजन पर निर्वाह कर रही हैं और जिनका यौन शोषणहुआ हैं, चुप्पी धारण किए हुए हैं। वहाँ एक अविश्वसनीय 80 वर्षीय विधवा, अन्नपूर्णा महापात्र, यहाँ है, जिन्होने पहले से ही एक लाख कविताएं भगवान जगन्नाथ की तारीफ में उपहारस्वरूप प्रदान की गई हैं! यहाँ कई ऐसी महिलाएं हैं जो अपने दु:ख और अकेलेपन से निजात पाना चाहती है, प्यार के लिए तरसती है, गरिमा के साथ समाज में रहना चाहती है, लेकिन हमारे लेखन में परिलक्षित नहीं हो रहा हैं। वहाँ कई महिला कवियों ने अपने दैनिक जीवन पर कविताएं लिखी है और अभी तक उन्हें सूचीबद्ध नहीं किया गया है।एक सौ साल पहले, फकीर मोहन सेनापति के लेखन में, हम रेवती को एक बेजुबान महिला के एक प्रतीक के रूप में पाते हैं। आजकल हमारे पास महिलाओं के लिए कई आवाज़ें हैं और उनके गुस्से, जुनून, उम्मीद और निराशा के बारे में लेखन उपलब्ध है। शब्द बदल गए हैं, लेखन दस्तवेजो में तब्दील हो गया है। आज चुप्पी धारण की हुई जीभें न केवल उनकी भावनात्मक लालसा के बारे में बात करने में सक्षम हैं, अपितु वे खुद को विशुद्ध रूप से शारीरिक रूप में व्यक्त करने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं है। भोग-विलास की वस्तु होने की वजह से आधुनिक औरत व्यक्तिपरक बन गई है,एक असली औरत। समकालीन ओड़िया कविताओं में महिलाओं की स्थिति बहुत शक्तिशाली नहीं है, उनकी स्थिति अभी भी हमारे समाज में बहुत अस्पष्ट है। लेकिन जब एक औरत कवयित्री बन जाती है, वह अपने घर के भीतर और बाहर सभी जगहों पर सवाल करने लगती है।
प्रश्न 11. सामान्य रूप से आप अपने आलेखों के लिए क्या विषय-वस्तु चुनती हैं ?
उत्तर:- जब मैंने पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना कैरियर शुरू किया था, मैं अंग्रेजी में लिखती थी। और चूंकि मेरे पाठक ओड़िशा से बाहर के थे, इसलिए मैंने ओड़िशा की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और जनजातीय जीवन को लिखने के लिए चुना। एक यात्रा-लेखक के रूप में मैंने पर्यटन स्थलों और अभयारण्यों के बारे में लिखा। मुझे मानवता की सकारात्मक कहानियों और उपलब्धि हासिल करने वाले लेखक जिन्होने दुनिया को एक बेहतर जगह बनाया, के लेखन से बेहद प्यार है।
प्रश्न 12. एक लेखक और कवयित्री होने के अलावा आप तीन भाषाओं - उड़िया, अंग्रेजी, असमिया और, कुछ हद तक, हिंदी में भी एक अच्छी अनुवादक हैं. क्या आप मुझे बता सकती हैं कि सभी शब्दों का सटीक अनुवाद एक भाषा से दूसरी भाषा में संभव है?
उत्तर :- मुझे विशेषाधिकार प्राप्त एक अनुवादक के रूप में अपनी सीमित साख के साथ अच्छा लग रहा है। मेरे अंग्रेजी भाषा के अनुवाद, समकालीन लघु कथाएँ और एक उपन्यास तक प्रतिबद्ध है। मैंने उनका अनुवाद किया है और न कि पुनर्सृजन। ओड़िया से मेरा अनुवाद अनुनय से बाहर है। मैं एक लेखिका हूँ। मैंने ओड़िया में कविताएं, कहानियां, और लेख लिखे हैं। अंग्रेजी में, मैं केवल लेख लिखती हूँ और साक्षात्कार लेती हूँ। मैंने असमिया में कुछ हद तक प्रवीणता प्राप्त की है। यही कारण है कि मैं असमिया से ओड़िया में अनुवाद कर सकती हूँ। मुझे असमिया से उड़िया में अनुवाद करने में आनंद आता है क्योंकि मैं असम से प्यार करती हूँ और इस प्रक्रिया के माध्यम से वहाँ के लोगों के बारे में, उनके इतिहास, संस्कृति और उनके कलात्मक विरासत सीखने के अवसर प्राप्त होते हैं। मैं अपनी मातृभाषा ओड़िया में अनुवाद करने में अधिक सहज महसूस करती हूँ। बोलने और लिखने की कला एक अनुवादक बनने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, वरन उन देशों की संस्कृति में डूबे होने की जरूरत है । मैं साहित्य की छात्रा नहीं हूँ और मैं अनुवाद करते समय औपचारिक व्याकरण का पालन नहीं करती हूँ। मैं अपने दिल का पालन करना पसंद करती हूँ। अब तक, मुझे नहीं लगता कि मैंने ओड़िया से अंग्रेजी अनुवाद का आनंद लिया है। मैं एक पेशे के रूप में अंग्रेजी में लेख लिखती हूँ। चूंकि मैं दोनों अंग्रेजी और ओड़िया जानती हूँ, अतः मुझसे यह उम्मीद की जाती है कि मै अपने लेखक दोस्तों की मदद करूँ। अब तक, मेरे किसी समकालीन ने मेरे अनुवाद के बारे में शिकायत नहीं की है। मैं हमेशा अपने अनुवाद में जान फूंकने के लिए, सम्प्रेषण-सक्षम बनाने और मौखिक और गैर मौखिक स्थितियों में अंतराल से बचने का प्रयास करती हूँ। मैं इस कार्य के लिए अपनी साधारण-शैली का प्रयोग करती हूँ, लेकिन मैंने पाया है कि शायद ही मेरा यह प्रयास कभी पुरस्कृत होगा। समकालीन उड़िया साहित्य भी वैश्वीकरण के जाल में फंस गया है। जहाँ किसी स्वदेशी ताल या सांस्कृतिक समृद्धि की व्याख्या नहीं की जा सकती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम केवल अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिए अत्यंत महत्व देते हैं। क्षेत्रीय भाषाएं आजकल अमीर और अधिक सामग्री में सराहनीय हैं। अंग्रेजी बस हस्तांतरण का एक माध्यम है, उन लोगों के लिए जिन्हें स्रोत भाषा नहीं आती हैं। लेकिन आजकल अंग्रेजी भाषा में भी मूल साहित्यिक कृतियां नहीं लिखी जा रही है। यह भाषा भी एक सांस्कृतिक वाहन के रूप में अपनी प्रमुखता खो रही है, हालांकि वाणिज्यिक भाषा के रूप में ख्याति प्राप्त की है। गैर अंग्रेजी लेखक अपनी भाषा को समृद्ध और समर्थन देते है। अनुवादकों का काम एक दोधारी तलवार है। जब तक कोई स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा नहीं जानता है तब तक वह एक अच्छा अनुवादक नहीं हो सकता। वह केवल दुभाषिया के रूप में कार्य करता है, जिसका अर्थ है कि वह शाब्दिक अनुवाद है लेकिन उसमें अंतर्निहित सांस्कृतिक समृद्धि खत्म हो जाती है। अनुवादक जब औसत दर्जे से ऊपर उठ जाते है ,अपने पीछे एक विरासत छोड़ जाते हैं। एक अच्छा अनुवादक दो संस्कृतियों के बीच एक राजदूत का कार्य करता है।
जब मैं अनुवाद करती हूँ अपने आप को एक सांस्कृतिक राजदूत की तरह अनुभव करती हूँ। जब मैंने असमिया से अनुवाद शुरू किया तो मैंने असम और उसकी संस्कृति के प्यार के खातिर। मैंने असमिया कवि हरेकृष्ण डेका की कविता मूनलाइट पढ़ी तो मैं इतनी प्रभावित हुई कि मैंने उसे मूल रूप में पढ़ना चाहा। जब मैंने मूल कविता ज़ोनक पढ़ी, मेरी खुशी की कोई सीमा नहीं थी। मैंने भाषा सीखी, देश के साथ परिचित हुई और पूरी भावना के साथ असमिया से ओड़िया में अनुवाद करने का काम शुरू कर दिया। अब तक, मैंने सात पुस्तकों का अनुवाद किया है और केन्द्रीय साहित्य अकादमी के एक और काम को पूरा किया है। इसके अलावा,पहले से ही मेरी कई कविताएं और कहानियां प्रकाशित हुई है। ओड़िया से अंग्रेजी अनुवाद भी मेरे रास्ते आया क्योंकि मैं कुछ युवा लेखकों की मदद करना चाहती थी। बाद में यह एक नियमित काम बन गया। आज मेरी अनूदित कई कहानियों को रूपा और कंपनी द्वारा प्रकाशित भारतीय साहित्य कहानी-संग्रहों में जगह मिल गई हैं ।
प्रश्न.13.आपने कितनी किताबों का अनुवाद किया है?
उत्तर:- मैंने आठ पुस्तकों का असमिया से ओड़िया में अनुवाद किया है, उनमें से सभी प्रकाशित हुई हैं। मेरी स्थानीय पत्रिकाओं में कई कविताएं और कहानियां प्रकाशित हुई है, लेकिन अभी तक उन्हें किताब के रूप में संकलित नहीं किया गया है। मैंने अंग्रेजी में तीन पुस्तकों का अनुवाद किया है हालांकि प्रिंट में केवल एक है। बाकी जल्द ही प्रकाशित होगी । लेकिन मेरी अनूदित कहानियों ने रूपा एंड कंपनी, रूपांतर द्वारा प्रकाशित कहानी-संग्रहों और भारतीय साहित्य में विशिष्ट जगह प्राप्त की है।
प्रश्न 14. किस ओड़िया साहित्यकार ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया है और क्यों ?
उत्तर:- फिक्शन में फकीर मोहन सेनापति और काहनू चरण मोहंती ने। अन्य लेखन में, मुझे नहीं लगता कि मैं किसी और ओड़िया लेखक द्वारा प्रभावित हूँ, क्योंकि मुझे लगता है कि मैं अभी तक एक लेखक को अपने आप में खोज रही हूँ। अच्छे लेखक भले ही मुझे प्रभावित करते है, लेकिन वे हमारे बदलते समाज के बारे में मेरी राय को प्रभावित नहीं कर पाते। फिक्शन के बारे में जहां तक मुझे लगता है मेरे समकालीन ओड़िया लेखकों के लेखन मुक्तात्मा के रूप में परिलक्षित नहीं होते हैं। मैं ताओ चेकॉव, मुराकामी, मिलान कुंडेरा और कई अन्य भारतीय लेखक जो मूल रूप से दक्षिण भारत में हैं, की तरफ देखती हूँ ।
प्रश्न 15. ओड़िया कविताओं की ओर झुकाव आपके अंदर कब विकसित हुआ ?
उत्तर:- 'अस्सी के दशक में, जब मैं पूरी तरह से वैरागिन बन गई थी, एक सशक्त इच्छाशक्ति वाली। लेकिन मैं मेरी वास्तविक समस्याओं को दूर करने में सक्षम नहीं थी। लगातार मेरे दर्द के साथ संघर्षरत मेरा अहंकार, मेरी कविताओं में प्रस्फुटित हुआ। लेकिन मैंने बहुत मुश्किल से ही उन्हें प्रकाशित किया, वे बहुत ही निजी थी, मेरी डायरी के पृष्ठों की तरह। मैंने अपने भीतर झाँका और अपनी खुद की एक आवाज विकसित की ।
प्रश्न 16. किस हद तक राइम्स ओड़िया कविता में आवश्यक माना जाता है? या मुक्त छंद के साथ तालबद्ध सौंदर्य ठीक है?
उत्तर :- राइम्स कविता के लिए आवश्यक है। राइम्स समृद्ध हैं क्योंकि जिन शब्दों की ध्वनि समान होती है, वे मन पर अधिक सूक्ष्म प्रभाव डालते है। प्राचीन कविता आवश्यक रूप से गेय थी, जैसा कि मंत्रों, भजनों तथा प्रार्थना में देखने को मिलता है। उनमें दोनों आंतरिक और बाहरी लय हैं। दुनिया भर में, कविता लय पर निर्भर करती है और यह एक महान विरासत पैतृक रूप में मिली है। ताल कविता में एक क्लासिक टच देता है। जब हम हमारे भीतर की भाषा में लिखते है, तब शब्द और शैली अपनी स्वयं की वास्तुकला का निर्माण करती है। मैं बिना ताल के सरल, मुक्त छंद लिखती हूँ मेरे पास चीजों को अनुभव और व्यक्त करने का अलग तरीका है। मेरी भाषा लगातार बदलती रहती है, मैं केवल एक माध्यम हूँ। मैं जानबूझ कर कविता लिखने का प्रयास नहीं करती हूँ, हालांकि मैं अपने विषयों में सौंदर्य-बोध और नाजुक संवेदनाओं को लाने का प्रयास करती हूँ, जो बिलकुल साधारण से असाधारण की तरफ ले जाती हैं। मुझे पीटे हुए पथ का अनुसरण करने में घुटन महसूस होती है। मैं चीजों को अलग तरीके से देखती और अनुभव करती हूँ। आधुनिक कवियों में तालबद्धता की कमी, वास्तव में गद्य और कविता में भ्रम पैदा करते हैं। जबकि दोनों के अलग-अलग क्षेत्र है। मुझे लगता है कि उनमें कवियों की वह शक्ति नहीं है।
प्रश्न 17. ओड़िया साहित्य की स्थिति आज क्या है?
उत्तर:- समकालीन ओड़िया साहित्य निश्चित रूप से घट रहा है हालांकि लेखकों और पत्रिकाओं की संख्या बढ़ गई है। पिछले तीन दशकों की विरासत में मिले हमारे समृद्ध साहित्य की प्रवृत्ति कमजोर होती जा रही है। कविताएं कमज़ोर हो गई है। कहानियां भले ही बेहतर हो रही हैं, लेकिन उनमें भी सशक्त साहित्यिक पुल का अभाव है। निबंध और महत्वपूर्ण appraisals लगभग गायब हो गए है। किसी भी लेखक में पाठकों को आकर्षित करने की पर्याप्त शक्तिशाली शैली नहीं है। पुस्तकें बिक नहीं रही है, फिर भी पहले की तुलना में कहीं अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं। इसका कारण यह है लेखक अपने पैसों से पुस्तकें छपवाते है और अन्य लेखकों को चाहे जानते है या नहीं, उन्हें तोहफे के रूप में देते हैं। वास्तव में यह अंधकारमय तस्वीर है। मुझे इस बात का गहरा अनुभव हो रहा है।
अब मैं इनके पीछे कारण का जिक्र करूंगी। क्योंकि यह इसलिए है कि साहित्य में सरकारी अधिकारियों का प्रभुत्व है और वे अच्छे साहित्य और सरकारी एजेंसी जो वास्तविक साहित्य को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है, उनके बीच अवरोध के रूप में खड़े हैं। मेरिट की गिनती नहीं है, क्योंकि लॉबी बहुत मजबूत है। अब ऐसी स्थिति मंच पर आ गई है जहां इन पेरवियों के द्वारा अच्छे साहित्य को दबाने और अपने स्वयं की प्रकाशित सामग्री को बढ़ावा देने के लिए एक सक्रिय दबाव डाला जाता है। किसी भी लॉबी से साहित्य को आजाद कराने के लिए मैं आवश्यक मदद उपलब्ध कराने के लिए हमेशा तैयार हूँ। केवल तीन फीसदी भारत के लोग सरकारी सेवाओं में हैं, ओडिशा के असली साहित्य को दबाकर दूर करने में सक्षम नहीं होने चाहिए। कई उन प्रतिभाओं ने लेखन बंद कर दिया है, जब उन्हें मान्यता नहीं मिली जिनके वे वास्तविक हकदार थे। आधुनिक साहित्य में मैं मुख्य रूप से आदिवासी साहित्य का उल्लेख करूंगी, जो उड़ीसा में सबसे उपेक्षित क्षेत्र है। अधिकांश आदिवासी साहित्य उनकी जीवन शैली से सीधे जुड़ा हुआ है और इसलिए वह बचा हुआ है, उनके पास शब्द है, आवाज है, लेकिन दुर्भाग्य से उनके पास कोई लिपि नहीं है। (लिपि क्या है?) विडंबना की बात है कि यद्यपि आदिवासी और ग्रामीण लोग सरकार के चुनाव में प्रमुख भूमिका अदा करते है, मगर उन्हें लाभ का हिस्सा कभी नहीं मिलता। कभी भी उन्हें प्रोत्साहित नहीं किया जाता, ना ही पदोन्नत किया जाता हैं या अपनी साहित्यिक कृतियों के लिए विदेश में प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा जाता है। भीम भोई आदिवासी कवि की प्रसिद्ध लाइनें आज संयुक्त राष्ट्र में प्रकाश डालती है "praninka Arata dukha apramita" लेकिन किसी भी आदिवासी लेखक को सरकार द्वारा विदेशों में इन कविताओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया। यह बदलना होगा ।
प्रश्न 18. क्या आप अपनी साहित्यिक यात्रा में किसी सपने (पुस्तक) की परियोजना रखती है, जो अभी तक साकार नहीं हुआ है?
उत्तर:- मैं पिछले साठ वर्षों में हमारी संस्कृति में क्षय के बारे में लिखने का सपना देखती हूँ। क्या गलत हो गया, और क्यों? सवाल मुझे परेशान करता रहता है। हो सकता है कि यह मेरे उपन्यास में प्रतिबिंबित हो, हो सकता है यह एक विशेष रूप से अनुसंधान कार्य बने। लेकिन यह सवाल मुझे परेशान करता रहता है ।
प्रश्न 19. आपने अंग्रेजी, ओड़िया, असमिया और हिन्दी में दुर्लभ विशेषज्ञता कैसे विकसित की ?
उत्तर:- मुझे नहीं लगता कि मुझे किसी भी क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल है । केवल जब मेरा कोई काम प्रकाशित होता है तो मुझे लगता है कि यह अच्छा होना चाहिए या इसे दूर फेंक दिया जाना चाहिए। ओडिया मेरी मातृभाषा है, स्वाभाविक रूप से मैं अपने आप को इस भाषा में बहुत बेहतर व्यक्त करने में सक्षम हूँ। असमिया के बारे में, मैं असम की समृद्धि से मोहित हो गई थी। किसी राज्य की साहित्यिक कृतियों को पढ़ने का मतलब उस जगह और वहाँ के लोगों के बारे में जानकारी प्राप्त करना है। और भाषा सीखने के लिए इसे पढ़ना आवश्यक है। मुझे असम से इतना प्यार था कि मैं अपने आप असमिया भाषा सीखी और जब मैंने पर्याप्त समझ प्राप्त की, तब ओड़िया में अनुवाद करने का प्रयास किया ताकि अपने लोगों के साथ समृद्ध साहित्यिक कृतियों को बाँट सकूँ। मैं असमिया भाषा में अनुवाद नहीं करती हूँ लेकिन अंग्रेजी एक दूसरी भाषा है। मैं ज्यादातर वाणिज्यिक कारणों से अंग्रेजी में लेख लिखती हूँ। मेरे पास कोई जॉब नहीं है। लेखन पर मेरी आजीविका चलती है। एक स्वतंत्र लेखक के रूप में यह माध्यम मेरी आय का एक स्रोत है। मैंने हमेशा माना है कि सरकारी अधिकारी वास्तविक लेखक नहीं बना सकते। खुशी और दर्द हाथ में हाथ मिलाकर नहीं चल सकते। यही कारण है कि मैं अंग्रेजी में लिखती हूँ। आप देख सकते हैं कि इन तीन भाषाओं का सहयोग स्वैच्छिक नहीं है। यह बस हो गया और यह मेरे लेखिका के रूप को प्रभावित नहीं करता है।
प्रश्न 20. एक लेखक के रूप में, आप भारत को कहाँ देखना चाहती है या किस भारत का सपना देखती है?
उत्तर:- मैं मनन करती हूँ कि यह दुनिया अच्छे मनुष्यों की है। आज हमारी दुनिया राजनीतिक और आर्थिक अवसरवादियों के बीच विभाजित है। मानवता अपना महत्व खो रही है। रियल भारत स्वतंत्र देश के लक्ष्यों से काफी दूर है जहां हर भारतीय गर्व से अपना सिर उठा सके। हमें इंडिया और भारत के बीच एक पुल का निर्माण करना चाहिए। इंडिया और भारत के बीच एक लंबी दूरी है। मैं भारत के लिए वास्तविक स्वतंत्रता चाहती हूँ ।
प्रश्न 1. अपने जन्म और माताजी-पिताजी के बारे में कुछ प्रकाश डालें?
उत्तर :- मेरे पिताजी स्वर्गीय लाल बिहारी जेना और माताजी श्रीमती महाश्वेता चौधरी हैं, जो भुवनेश्वर के पास स्थित खुर्दा नामक एक छोटे कस्बे में लेक्चरर थे। मेरी माँ अब सेवानिवृत्त है । मेरे दो भाई बहन है। मेरे नाना, स्वर्गीय विपिन बिहारी चौधरी,एक प्रख्यात चित्रकार थे और वे पहले मूक और बधिर कलाकार थे, जिनकी उपस्थिति लंदन के प्रतिष्ठित कला के रॉयल कॉलेज में अनुभव की गई। लेकिन उन्होने कला के अपने जुनून को त्यागकर महात्मा गांधी के कहने पर, देश के मूक और बधिर समुदायों के उत्थान के लिए काम किया। वे फकीर मोहन सेनापति (आधुनिक ओड़िया साहित्य के पिता) के पोते थे। मैं इस वंश में पैदा होने के लिए धन्य हूँ और ओडिशा की कला, संस्कृति को राष्ट्रीय स्तर पर शोहरत दिलाने के लिए कर्तव्य-भावना को अपने भीतर अनुभव कर रही हूँ।
प्रश्न 2. जब आपने लेखन-कर्म शुरू किया, तब आपने अपनी अभिव्यक्ति के लिए किस शैली को अनुकूल पाया?
उत्तर:- किसी भी प्रकार की कविता मुझे तुरंत आकर्षित करती हैं। लेकिन एक अच्छी कविता मेरे साथ हमेशा रहती है। काव्य, जो अपने आप में एक रहस्य है, जिसमें एक मिस्टिक अपील होती है,अपनी गुणवत्ता के लिए पूरी तरह से आपके दिलो-दिमाग पर छा जाती है।अन्यथा कई भावनाओं को जो अभिव्यक्त नहीं की जा सकती, वे कागज पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाती है। चूंकि काव्य आंतरिक अशांति, संघर्ष, लालसा और दुख को दर्शाता है, इसलिए इसमें मानवीय भावनाओं को साथ जोड़ने की क्षमता है। मुझे लगता है कि कविता मेरी आत्मा में एक ताजे झरने की तरह बहती है, जब यह इतना संवेगशील हो जाता है कि नियंत्रण से परे हो जाता है, तब यह सार्वभौमिक हो जाता है। मैंने कविता को एक बच्चे की तरह प्यार किया हैं। जो कुछ दृढ़ सहज भावनाओं द्वारा अंतस से बाहर निकलता है ,मेरी कविताओं में जगह पाते हैं। ये विचार मैं गद्य या निबंध में प्रकट नहीं कर सकती हूँ, लेकिन मैं मानती हूँ कि एक महाकाव्य कविता का प्रकाशन मेरी क्षमता से परे है। मेरी कविताएं एक तरह से विशेष समय पर उभरी भावनाओं के साथ जोखिम भरे कार्य का एक प्रतिबिंब है। मैं अपनी कविताओं को क्राफ्ट नहीं मानती, हालांकि कला भी इस आधुनिक युग में तकनीकी कार्य है।
मैंने अपनी पहली कविता लिखी, जब बांग्लादेश का युद्ध हुआ था। वह कविता लयबद्ध, प्रेरक और मातृभूमि के लिए प्यार से प्रेरित थी। लेकिन मैं मानवीय भावनाओं और प्रकृति के सौंदर्य की ओर खिंची चली गई क्योंकि मैं एक छोटे से गाँव में पली बड़ी हूँ। मेरा जीवन सरल था,अतः मेरे लिए स्वार्थी, जटिल, अन्यायपूर्ण जीवन के साथ समायोजित होना न केवल मुश्किल, वरन लगभग असंभव है ।
प्रश्न 3. आप अपने साहित्यिक प्रयासों के बारे में कृपया विस्तार से बताएं?
उत्तर :- अब तक मेरी प्रकाशित 16 पुस्तकें है। उनमें से सात असमिया से ओडिया में अनूदित हैं और ओड़िया में प्रकाशित तीन कविता संग्रह निसर्ग ध्वनि, ई सबू ध्रुबमुहूर्त और नक्षत्र देवी है। ओड़िया में मेरा एक कहानी-संग्रह ‘इन्द्र मालतीर शोक’ और कवि रमाकांत रथ पर एक जीवनी भी प्रकाशित हुई है ।
मेरी अंग्रेजी में भी तीन किताबें प्रकाशित हुई हैं - मेरे नाना का एक मोनोग्राफ 'Artists of a Mute Worlds', 'लघु कहानियों का अनुवाद' तथा `विश्व पत्रकारिता में महिलाएं' नामक पुस्तक का सम्पादन। इसके अलावा, समकालीन लेखकों की अंग्रेजी में मेरे द्वारा अनुवादित कई लघु कथाएँ कई 'लेखकों के संग्रह में शामिल हैं।
मैं नियमित रूप से कविताएँ , कहानियाँ , फीचर और कॉलम लिखती हूँ, जो ओड़िया भाषा की मुख्य पत्रिकाओं में प्रकाशित होती हैं। मेरा कार्य भारतीय साहित्य, डिस्कवर इंडिया, स्वागत, जेट विंग्स, वूमेन एरा, अलाइव और अन्य पत्रिकाओं में भी दिखाई देता है। मैंने विषय 'ओड़िशा और असम के समकालीन रोमांटिक कविता का तुलनात्मक अध्ययन' पर संस्कृति विभाग,नई दिल्ली से सफलतापूर्वक अपनी वरिष्ठ फैलोशिप पूरी की है और अब अनभ्यस्त साहित्यिक अनुसंधान परियोजनाओं पर काम कर रही हूँ।
प्रश्न 4. ‘निसर्ग ध्वनि’ कविता-संग्रह में किस प्रकार की कविताएं शामिल की गई हैं?
उत्तर:- निसर्ग ध्वनि मेरी कविताओं का पहला संग्रह है, जो 2004 में प्रकाशित हुआ। निसर्ग का अर्थ प्रकृति और ध्वनि का अर्थ संगीत से लिया गया है। मेरी कविताओं की यात्रा नीरवता से कोलाहल तक होती हैं। उनमें अलगाव की भावना और विरोधाभासों के एक संश्लेषण की उत्तम प्रस्तुति है। यह मेरा पहला संग्रह था और यह मेरे लिए सुदूर रहने वाले लोगों की संवेदनाओं के लिए एक खिड़की खोलने का इरादा था। यह पाठकों को तय करना है कि मैं इसमें कितनी सफल रही। कविताओं में घने जंगल में प्रपात,आदिवासियों की जमीन में घाट-सड़कों से लेकर भोपाल त्रासदी शामिलहैं।
मेरा कविताओं की दूसरी पुस्तक ‘ऐ सबू ध्रुबमुहूर्त’ में और अधिक स्पष्ट तरीके में रोमांटिक भावों को दर्शाया गया है। ये कविताएं शारीरिक और आध्यात्मिक दुनिया के बीच संबंधों पर आधारित हैं। प्यार, कोमलता के अव्यवस्थित धरातल जहां जीवन के तुच्छ मुद्दों को माध्यम बनाया गया है, गर्भपात और महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के कुछ विषयों को इसमें लिया गया हैं। हालांकि इन कविताओं में आसानी से कामुकता के भाव दिखाई दे सकते हैं, मगर वे परिचित शारीरिक स्तर के लिए बाध्य नहीं हैं। शायद उनमें मेरी अपनी गैर- परंपरागत इच्छाएं प्रतिबिंबित हुई हैं। आप कह सकते हैं यह इच्छा-पूर्ति का एक माध्यम है।
हाल ही में प्रकाशित, मेरी तीसरी पुस्तक ‘नक्षत्र देवी’ मेरे अपने दृष्टिकोण को परिभाषित करती है और एक तरह से यह स्व-घोषणा का एक प्रकार है। प्यार जिसने अपना अर्थ खो दिया हैनतथा बदलते रिश्ते इन कविताओं का मूलभूत आधार हैं। यहाँ, भले ही तकनीक विकसित हो, सटीक हो, लेकिन कहने को कुछ नहीं है। हो सकता है, इनमें आपको संवाद कम लगे क्योंकि मैंने अपने जीवन के स्पष्ट क्षणों तथा विशिष्ट घटनाओं की नुकीली व्याख्या की है। इससे जिज्ञासा पैदा होती है। मैं अपने आप को सिराज जैसे ऐतिहासिक पात्रों के साथ वार्तालाप करती हुई पाती हूँ, मैंने मणिपुर, शिलांग के उत्तेजक रोमांस को और मेरी अपनी “कालिजाई”, एक युवा दुल्हन जो चिल्का झील में एक तूफानी शाम में आत्महत्या कर लेती है, में महिलाओं के दर्द को महसूस किया है ।
प्रश्न 5 आपकी कविताओं की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर:- यह जवाब देना मुश्किल है। सच कहूँ, मैंने अपनी कविताओं का कभी विश्लेषण नहीं किया है कि उनमें खास क्या हैं। अच्छा रहेगा पाठक इसे स्वयं खोजें। हालांकि, मैं अपने भीतर दमघोटु नीरवता,निराशा और क्षणभंगुर-प्यार को अनुभव करती हूँ। मेरी कविताएं निश्चित रूप से इन में से कुछ को प्रतिबिंबित करती हैं, लेकिन मैं नहीं जानती कि यह कहाँ तक व्यापक सत्य है। मेरी कविताओं का सार है “मैं, मेरापन”। कई रंग के रिश्ते और कई अलग गहराइयाँ- कुछ उन्मादपूर्ण तीव्रता, कुछ बेहद दर्दनाक क्षण-जो मुझे तोड़ देते हैं। आज साहित्य एक चौराहे पर खड़ा है। सही रास्ता कौन-सा है? मानवीय मूल्यों का? मूल्यों का अलग अर्थ है। इस संदर्भ में, मुझे अपनी जड़ों की तलाश है और उन लोगों के साथ जुड़े रहने का प्रयास करती हूँ। संघर्ष होने के लिए बाध्य हैं और वे सब ईमानदारी से मेरे लेखन में परिलक्षित होते हैं। मैं कविताओं के एक भविष्य की तलाश करती हूँ, जरूरी नहीं है कि वह कविता लिखने के स्थापित मापदंडों के अनुरूप हो। प्रकृति और संवेदनाओं की एक समरसता है जैसे बारिश की बूंद तथा आँसू की बूंद, चांदनी और प्यार में होने की अनुभूति,मतभेद और विशिष्टताएं इत्यादि अपने आप को अभिव्यक्त करने के लिए आवश्यक है। मैं अपनी कविता के माध्यम से कुछ चीजें याद करने और कुछ गहरी संवेदनाओं को भूलने के लिए लिखती हूँ। मेरा मानना है कि शब्द एक कीमियागर की तरह अभिनय करते हैं ।
हालांकि यह मैंने जानबूझकर नहीं किया था, मैंने 'बढ़ते अनाज' के बारे में लिखा जो कृषि-संस्कृति को प्रतिबिंबित करती है, योद्धा सिराज के बारे में,कालिजाई जैसे मिथक पात्रों के बारे में लिखा। मेरी कविताओं में विविधता है। हालांकि मुख्य रूप से मैं प्यार की भावनाओं के बारे में लिखने का प्रयास करती हूँ, भले ही, वे भारी प्रतीकों से भरी हुई हो। मैं अपने लेखन-कर्म में एक सौंदर्य और नाजुक स्पर्श लाने की कोशिश करती हूँ। ज्यादातर मेरी कविताएं बेहद निजी हैं। वे मेरे अपने 'स्व' की आत्म-घोषणाएं हैं, जो मेरे मन की बात कहने की हिम्मत रखते हैं और एक मुक्त-आत्मा का जीवन जीती है, भले ही बाहरी जिम्मेदारियों के साथ प्रथागत बेड़ियों में बंधी हुई हो।
प्रश्न 6. रोमांटिक कविता से आपका क्या मतलब है? वर्ड्वर्थ की रोमांटिक कविता की अवधारणा से आपकी कविताएं कैसे अलग हैं?
उत्तर:- मुझे विश्वास है, मेरी कविताएं पारंपरिक ढंग से लिखी जाने वाली कविताओं के तरीकों के अनुसरण के लिए बाध्य नहीं है। मैं एक गैर कंफर्मिस्ट हूँ। मैं अपने अहंकार के साथ-साथ दर्द को लेती हूँ। क्या रोमांटिसिज़्म दर्द की एक अवधारणा नहीं है? मुझे लगता है कि मैं दोनों का मिश्रण हूँ। मैं भी प्रकृति और उसकी नीरवता, करुणा की गुप्त भाषा की ओर खींची चली जाती हूँ। मैं अपने को प्रकृति के साथ जोड़कर 'पाठकों के दिलों को छूने की कोशिश करती हूँ। वर्ड-वर्थ रोमांटिक युग के एक उत्कृष्ट कवि है,लेकिन मैं उनकी कविताओं से प्रभावित नहीं हूँ। क्लासिक कविता-लेखन के लिए अधिक कुशलता, अधिक से अधिक एकाग्रता और गहरी अंतर्दृष्टि की आवश्यकता है, जिसकी कमी को स्वीकार करने वाली मैं पहली कवियत्री हूंगी। मैं भी आज के पैटर्न-लोकप्रिय लेखन, जिसे सबसे अच्छे सामाजिक प्रतिबिंब की पत्रकारिता कहा जा सकता है, में नहीं फँस सकती हूँ। मुझे लगता है, मुझमें आवश्यक कौशल, गहराई और क्षमताओं की कमी है। जब मैं अपने आप को किसी अन्य तरीके से व्यक्त नहीं कर सकती, तब लिखती हूँ। काव्य इतना आसान नहीं है, यह भावनाओं, विषयों, सत्य और दोनों आंतरिक और बाहरी दुनिया में संघर्ष का विवरण होता है। कवि के रूप में जाने जाने के लिए किसी को भी एक काव्य परंपरा की क्लासिक विरासत का अध्ययन करना जरूरी है जिसे मैं अभी कर रही हूँ।
प्रश्न 7. क्या प्यार आपकी कविता का सार है? यदि ऐसा है, तो आप मानव प्रेम के माध्यम से क्या कल्पना करती है ? इस भौतिकवादी दुनिया में प्यार कैसे जीवित रह सकता है?
उत्तर:- काव्य शुरू से ही मानव प्रेम का बोझ उठाता है। लघु कथाएँ या निबंध प्यार पर इस तरह निर्भर नहीं करते जिस तरह कविता। मैं मानव प्रेम की अमरता की घोषणा करने के लिए बाध्य महसूस कर रही हूँ। मैं (मोनालिसा- मंत्र से तुम्हारा क्या मतलब है, इस पैरा फिर से लिखना) अपने पूर्ववर्तियों की तरह मंत्र नहीं लिख सकती हूँ। अगर मैं अस्सी साल जीऊँ, तब भी नहीं लिख सकती। प्यार जिंदा रहता है और कि केवल यही एक चीज है कि एक भौतिकवादी दुनिया में जीवित है। बिना किसी मिलावट के इसे रखें, यही सार्वभौमिक जीवन है।
प्रश्न 8. “इन्द्रमालतीर शोक” में आपने कैसी कहानियाँ लिखी हैं ?
उत्तर:- “इन्द्रमालतीर शोक” मेरा छोटी कहानियों का एकमात्र संग्रह है। मेरी कहानियां मेरी कविताओं की पूरक हैं क्योंकि कहानियाँ कविताओं की तुलना में एक बहुत व्यापक क्षेत्र को कवर कर सकती हैं। जो कविताओं में नहीं कहा जा सकता है, वह मेरी कहानियों में हैं या उस तरफ सबसे अच्छा संकेत दिया जा सकता है।
मेरा मानना है कि मानवता, उदारता, और सहानुभूति जन्मजात मानवीय मूल्य हैं और मेरी कहानियों में उनकी झलक मिलती है। मुझे लगता है मेरी कहानियां पाठकों के साथ जल्दी से जुड़ जाती है। लेकिन कहानी लिखने के लिए धैर्य और तैयारी के अतिरिक्त विभिन्न कौशल और क्षमताओं की आवश्यकता होती है। चूंकि मैंने अनछुए पहलुओं को लिखा है,इसलिए मेरी विचार-प्रक्रिया,उनकी अभिव्यक्ति और तकनीक समकालीन लेखकों से अलग तरीकों की मांग करती हैं। लेकिन मैं यहाँ असहाय हूँ।
मेरी कहानियों में कई नए आयाम हैं, खासकर जब वे हमारे समाज की समकालीन जीवन-शैली के हर क्षेत्र में खिसकते मूल्यों को दर्शाती हैं। जब मैं लिखती हूँ तो मैं अपनी राय थोपने की कोशिश नहीं करती हूँ। मेरी कहानियां मेरी कविताओं से पूरी तरह अलग हैं। मेरी कविता में 'मैं, मेरा”को' केंद्र चरण में रखती हूँ और कहानियों में 'उनके बारे में' बात करती हूँ। नागाफ़ाक़ी,पथर जो एक ताजा सपना बन गया और 14 फरवरी बहुत प्रशंसित कहानियाँ है, जो हमारे उच्च समाज की गुप्त दुनिया की विरोधाभासी अपेक्षाओं, प्यार की गहराई, गद्दारों, और नकार देने पर आधारित हैं। मैं यह कबूल करती हूँ कि ऐसे अच्छे और बुरे पात्रों से वास्तव में मेरा परिचय हुआ। न तो कविता में और न ही मेरी कल्पना में ऐसा कोई झूठ है।
प्रश्न 9. क्या आपने अपने आलेखों में जंगल या पर्यावरण के मुद्दों को उठाने की चेष्टा की हैं ? अत्यधिक शहरी और तथाकथित सभ्य लोगों में प्रकृति-प्रेम कैसे उत्पन्न किया जा सकता है? आप किन उपायों के बारे में सुझाव देना चाहेगी?
उत्तर:- मैंने अपने आलेखों में किसी भी वन या पर्यावरण से सम्बंधित मुद्दों को नहीं उठाया है। जब मैंने अंग्रेजी में लेख लिखे, मेरा इरादा था हमारे पास पहले से ही मौजूद जंगलों के धन से प्राप्त सुख-सुविधाओं के बारे में शहरी लोगों पढ़ें। वास्तव में, कई ऐसे भी है, जिन्हें यह पता नहीं है कि सिमिलिपाल उड़ीसा में है, बिहार में नहीं है। उन्हें सूचित करना आवश्यक था। यदि आपको अपनी वन संपदा और इसके महत्व के बारे में पता है कि आप उनसे संबन्धित मुद्दों को उठाकर उनकी रक्षा कर सकते हैं। ओडिशा में 18 आरक्षित वन-अभयारण्य है और, हाल ही में अब तक, इन्हें जंगलों में गिना जाता हैं। ओडिशा के अभयारण्यों के बारे में यह बात अद्वितीय है कि उनमें सम्पूर्ण वन्य जीवन, रॉयल बंगाल टाइगर्स से हाथी, चीतल से मगरमच्छ और समुद्री कछुए, दोनों स्थानिक और लुप्तप्राय प्रजातियों के पक्षियों की अलग-अलग किस्में पाई जाती है। ऑर्किड समस्त ओडिशा की पूंजी हैं। अब दूसरी तरफ आते हैं। हमें सदियों पुराने साल वृक्षों से भरे जंगलों की रक्षा क्यों करनी चाहिए? अगर हम जानते हैं कि सिमिलिपाल पश्चिमी पहाड़ रिज पर स्थित है और यह उड़ीसा में रेगिस्तानी हवाओं को प्रवेश करने से रोकता है, तो हम क्यों अपने हरे जंगलों को नष्ट करेंगें। हर दिन लकड़ी के ट्रकों की जंगल के वन अधिकारियों के साथ मिलीभगत से बाहर तस्करी हो रही है। एक पत्रकार के रूप में, मैं अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करती हूँ। लेकिन मैं इन मुद्दों को नहीं उठाती, क्योंकि यह एक जीवन भर का कार्य है, जिसके लिए मैं प्रतिबद्ध होने में सक्षम नहीं हूँ। लेकिन मुद्दे मुझे काफी प्रभावित करते हैं और मैं उन पर आधारित एक उपन्यास लिख रही हूँ।
प्रश्न 10. हमें ओड़िया साहित्य में महिलाओं के चित्रण के बारे में कुछ बताएं?
उत्तर:- सभी दूसरी दुनियाओं की तरह, महिलाओं की दुनिया भी स्वाभाविक तौर पर बहुआयमी है। विभिन्न महिला लेखिकाओं ने इस दुनिया की लैंगिक वास्तविकता पर अलग-अलग विचार प्रकट किए हैं। हालांकि, उनके लेखन में एक सांझे दर्द, पीड़ा और आकांक्षा का पता लगाना संभव है। मैं एक साहित्यिक विचारक नहीं हूँ और न ही मैं ओडिया साहित्य की विशेषज्ञ हूँ। बदलते समाज में अधिकांश महिलाओं में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। राजनीतिक समर्थन, शिक्षा, वित्तीय अधिकार के बावजूद महिलाओं का उत्पीड़न जारी है। पुरी की विधवाएं, जो असामयिक और अल्प भोजन पर निर्वाह कर रही हैं और जिनका यौन शोषणहुआ हैं, चुप्पी धारण किए हुए हैं। वहाँ एक अविश्वसनीय 80 वर्षीय विधवा, अन्नपूर्णा महापात्र, यहाँ है, जिन्होने पहले से ही एक लाख कविताएं भगवान जगन्नाथ की तारीफ में उपहारस्वरूप प्रदान की गई हैं! यहाँ कई ऐसी महिलाएं हैं जो अपने दु:ख और अकेलेपन से निजात पाना चाहती है, प्यार के लिए तरसती है, गरिमा के साथ समाज में रहना चाहती है, लेकिन हमारे लेखन में परिलक्षित नहीं हो रहा हैं। वहाँ कई महिला कवियों ने अपने दैनिक जीवन पर कविताएं लिखी है और अभी तक उन्हें सूचीबद्ध नहीं किया गया है।एक सौ साल पहले, फकीर मोहन सेनापति के लेखन में, हम रेवती को एक बेजुबान महिला के एक प्रतीक के रूप में पाते हैं। आजकल हमारे पास महिलाओं के लिए कई आवाज़ें हैं और उनके गुस्से, जुनून, उम्मीद और निराशा के बारे में लेखन उपलब्ध है। शब्द बदल गए हैं, लेखन दस्तवेजो में तब्दील हो गया है। आज चुप्पी धारण की हुई जीभें न केवल उनकी भावनात्मक लालसा के बारे में बात करने में सक्षम हैं, अपितु वे खुद को विशुद्ध रूप से शारीरिक रूप में व्यक्त करने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं है। भोग-विलास की वस्तु होने की वजह से आधुनिक औरत व्यक्तिपरक बन गई है,एक असली औरत। समकालीन ओड़िया कविताओं में महिलाओं की स्थिति बहुत शक्तिशाली नहीं है, उनकी स्थिति अभी भी हमारे समाज में बहुत अस्पष्ट है। लेकिन जब एक औरत कवयित्री बन जाती है, वह अपने घर के भीतर और बाहर सभी जगहों पर सवाल करने लगती है।
प्रश्न 11. सामान्य रूप से आप अपने आलेखों के लिए क्या विषय-वस्तु चुनती हैं ?
उत्तर:- जब मैंने पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना कैरियर शुरू किया था, मैं अंग्रेजी में लिखती थी। और चूंकि मेरे पाठक ओड़िशा से बाहर के थे, इसलिए मैंने ओड़िशा की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और जनजातीय जीवन को लिखने के लिए चुना। एक यात्रा-लेखक के रूप में मैंने पर्यटन स्थलों और अभयारण्यों के बारे में लिखा। मुझे मानवता की सकारात्मक कहानियों और उपलब्धि हासिल करने वाले लेखक जिन्होने दुनिया को एक बेहतर जगह बनाया, के लेखन से बेहद प्यार है।
प्रश्न 12. एक लेखक और कवयित्री होने के अलावा आप तीन भाषाओं - उड़िया, अंग्रेजी, असमिया और, कुछ हद तक, हिंदी में भी एक अच्छी अनुवादक हैं. क्या आप मुझे बता सकती हैं कि सभी शब्दों का सटीक अनुवाद एक भाषा से दूसरी भाषा में संभव है?
उत्तर :- मुझे विशेषाधिकार प्राप्त एक अनुवादक के रूप में अपनी सीमित साख के साथ अच्छा लग रहा है। मेरे अंग्रेजी भाषा के अनुवाद, समकालीन लघु कथाएँ और एक उपन्यास तक प्रतिबद्ध है। मैंने उनका अनुवाद किया है और न कि पुनर्सृजन। ओड़िया से मेरा अनुवाद अनुनय से बाहर है। मैं एक लेखिका हूँ। मैंने ओड़िया में कविताएं, कहानियां, और लेख लिखे हैं। अंग्रेजी में, मैं केवल लेख लिखती हूँ और साक्षात्कार लेती हूँ। मैंने असमिया में कुछ हद तक प्रवीणता प्राप्त की है। यही कारण है कि मैं असमिया से ओड़िया में अनुवाद कर सकती हूँ। मुझे असमिया से उड़िया में अनुवाद करने में आनंद आता है क्योंकि मैं असम से प्यार करती हूँ और इस प्रक्रिया के माध्यम से वहाँ के लोगों के बारे में, उनके इतिहास, संस्कृति और उनके कलात्मक विरासत सीखने के अवसर प्राप्त होते हैं। मैं अपनी मातृभाषा ओड़िया में अनुवाद करने में अधिक सहज महसूस करती हूँ। बोलने और लिखने की कला एक अनुवादक बनने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, वरन उन देशों की संस्कृति में डूबे होने की जरूरत है । मैं साहित्य की छात्रा नहीं हूँ और मैं अनुवाद करते समय औपचारिक व्याकरण का पालन नहीं करती हूँ। मैं अपने दिल का पालन करना पसंद करती हूँ। अब तक, मुझे नहीं लगता कि मैंने ओड़िया से अंग्रेजी अनुवाद का आनंद लिया है। मैं एक पेशे के रूप में अंग्रेजी में लेख लिखती हूँ। चूंकि मैं दोनों अंग्रेजी और ओड़िया जानती हूँ, अतः मुझसे यह उम्मीद की जाती है कि मै अपने लेखक दोस्तों की मदद करूँ। अब तक, मेरे किसी समकालीन ने मेरे अनुवाद के बारे में शिकायत नहीं की है। मैं हमेशा अपने अनुवाद में जान फूंकने के लिए, सम्प्रेषण-सक्षम बनाने और मौखिक और गैर मौखिक स्थितियों में अंतराल से बचने का प्रयास करती हूँ। मैं इस कार्य के लिए अपनी साधारण-शैली का प्रयोग करती हूँ, लेकिन मैंने पाया है कि शायद ही मेरा यह प्रयास कभी पुरस्कृत होगा। समकालीन उड़िया साहित्य भी वैश्वीकरण के जाल में फंस गया है। जहाँ किसी स्वदेशी ताल या सांस्कृतिक समृद्धि की व्याख्या नहीं की जा सकती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम केवल अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिए अत्यंत महत्व देते हैं। क्षेत्रीय भाषाएं आजकल अमीर और अधिक सामग्री में सराहनीय हैं। अंग्रेजी बस हस्तांतरण का एक माध्यम है, उन लोगों के लिए जिन्हें स्रोत भाषा नहीं आती हैं। लेकिन आजकल अंग्रेजी भाषा में भी मूल साहित्यिक कृतियां नहीं लिखी जा रही है। यह भाषा भी एक सांस्कृतिक वाहन के रूप में अपनी प्रमुखता खो रही है, हालांकि वाणिज्यिक भाषा के रूप में ख्याति प्राप्त की है। गैर अंग्रेजी लेखक अपनी भाषा को समृद्ध और समर्थन देते है। अनुवादकों का काम एक दोधारी तलवार है। जब तक कोई स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा नहीं जानता है तब तक वह एक अच्छा अनुवादक नहीं हो सकता। वह केवल दुभाषिया के रूप में कार्य करता है, जिसका अर्थ है कि वह शाब्दिक अनुवाद है लेकिन उसमें अंतर्निहित सांस्कृतिक समृद्धि खत्म हो जाती है। अनुवादक जब औसत दर्जे से ऊपर उठ जाते है ,अपने पीछे एक विरासत छोड़ जाते हैं। एक अच्छा अनुवादक दो संस्कृतियों के बीच एक राजदूत का कार्य करता है।
जब मैं अनुवाद करती हूँ अपने आप को एक सांस्कृतिक राजदूत की तरह अनुभव करती हूँ। जब मैंने असमिया से अनुवाद शुरू किया तो मैंने असम और उसकी संस्कृति के प्यार के खातिर। मैंने असमिया कवि हरेकृष्ण डेका की कविता मूनलाइट पढ़ी तो मैं इतनी प्रभावित हुई कि मैंने उसे मूल रूप में पढ़ना चाहा। जब मैंने मूल कविता ज़ोनक पढ़ी, मेरी खुशी की कोई सीमा नहीं थी। मैंने भाषा सीखी, देश के साथ परिचित हुई और पूरी भावना के साथ असमिया से ओड़िया में अनुवाद करने का काम शुरू कर दिया। अब तक, मैंने सात पुस्तकों का अनुवाद किया है और केन्द्रीय साहित्य अकादमी के एक और काम को पूरा किया है। इसके अलावा,पहले से ही मेरी कई कविताएं और कहानियां प्रकाशित हुई है। ओड़िया से अंग्रेजी अनुवाद भी मेरे रास्ते आया क्योंकि मैं कुछ युवा लेखकों की मदद करना चाहती थी। बाद में यह एक नियमित काम बन गया। आज मेरी अनूदित कई कहानियों को रूपा और कंपनी द्वारा प्रकाशित भारतीय साहित्य कहानी-संग्रहों में जगह मिल गई हैं ।
प्रश्न.13.आपने कितनी किताबों का अनुवाद किया है?
उत्तर:- मैंने आठ पुस्तकों का असमिया से ओड़िया में अनुवाद किया है, उनमें से सभी प्रकाशित हुई हैं। मेरी स्थानीय पत्रिकाओं में कई कविताएं और कहानियां प्रकाशित हुई है, लेकिन अभी तक उन्हें किताब के रूप में संकलित नहीं किया गया है। मैंने अंग्रेजी में तीन पुस्तकों का अनुवाद किया है हालांकि प्रिंट में केवल एक है। बाकी जल्द ही प्रकाशित होगी । लेकिन मेरी अनूदित कहानियों ने रूपा एंड कंपनी, रूपांतर द्वारा प्रकाशित कहानी-संग्रहों और भारतीय साहित्य में विशिष्ट जगह प्राप्त की है।
प्रश्न 14. किस ओड़िया साहित्यकार ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया है और क्यों ?
उत्तर:- फिक्शन में फकीर मोहन सेनापति और काहनू चरण मोहंती ने। अन्य लेखन में, मुझे नहीं लगता कि मैं किसी और ओड़िया लेखक द्वारा प्रभावित हूँ, क्योंकि मुझे लगता है कि मैं अभी तक एक लेखक को अपने आप में खोज रही हूँ। अच्छे लेखक भले ही मुझे प्रभावित करते है, लेकिन वे हमारे बदलते समाज के बारे में मेरी राय को प्रभावित नहीं कर पाते। फिक्शन के बारे में जहां तक मुझे लगता है मेरे समकालीन ओड़िया लेखकों के लेखन मुक्तात्मा के रूप में परिलक्षित नहीं होते हैं। मैं ताओ चेकॉव, मुराकामी, मिलान कुंडेरा और कई अन्य भारतीय लेखक जो मूल रूप से दक्षिण भारत में हैं, की तरफ देखती हूँ ।
प्रश्न 15. ओड़िया कविताओं की ओर झुकाव आपके अंदर कब विकसित हुआ ?
उत्तर:- 'अस्सी के दशक में, जब मैं पूरी तरह से वैरागिन बन गई थी, एक सशक्त इच्छाशक्ति वाली। लेकिन मैं मेरी वास्तविक समस्याओं को दूर करने में सक्षम नहीं थी। लगातार मेरे दर्द के साथ संघर्षरत मेरा अहंकार, मेरी कविताओं में प्रस्फुटित हुआ। लेकिन मैंने बहुत मुश्किल से ही उन्हें प्रकाशित किया, वे बहुत ही निजी थी, मेरी डायरी के पृष्ठों की तरह। मैंने अपने भीतर झाँका और अपनी खुद की एक आवाज विकसित की ।
प्रश्न 16. किस हद तक राइम्स ओड़िया कविता में आवश्यक माना जाता है? या मुक्त छंद के साथ तालबद्ध सौंदर्य ठीक है?
उत्तर :- राइम्स कविता के लिए आवश्यक है। राइम्स समृद्ध हैं क्योंकि जिन शब्दों की ध्वनि समान होती है, वे मन पर अधिक सूक्ष्म प्रभाव डालते है। प्राचीन कविता आवश्यक रूप से गेय थी, जैसा कि मंत्रों, भजनों तथा प्रार्थना में देखने को मिलता है। उनमें दोनों आंतरिक और बाहरी लय हैं। दुनिया भर में, कविता लय पर निर्भर करती है और यह एक महान विरासत पैतृक रूप में मिली है। ताल कविता में एक क्लासिक टच देता है। जब हम हमारे भीतर की भाषा में लिखते है, तब शब्द और शैली अपनी स्वयं की वास्तुकला का निर्माण करती है। मैं बिना ताल के सरल, मुक्त छंद लिखती हूँ मेरे पास चीजों को अनुभव और व्यक्त करने का अलग तरीका है। मेरी भाषा लगातार बदलती रहती है, मैं केवल एक माध्यम हूँ। मैं जानबूझ कर कविता लिखने का प्रयास नहीं करती हूँ, हालांकि मैं अपने विषयों में सौंदर्य-बोध और नाजुक संवेदनाओं को लाने का प्रयास करती हूँ, जो बिलकुल साधारण से असाधारण की तरफ ले जाती हैं। मुझे पीटे हुए पथ का अनुसरण करने में घुटन महसूस होती है। मैं चीजों को अलग तरीके से देखती और अनुभव करती हूँ। आधुनिक कवियों में तालबद्धता की कमी, वास्तव में गद्य और कविता में भ्रम पैदा करते हैं। जबकि दोनों के अलग-अलग क्षेत्र है। मुझे लगता है कि उनमें कवियों की वह शक्ति नहीं है।
प्रश्न 17. ओड़िया साहित्य की स्थिति आज क्या है?
उत्तर:- समकालीन ओड़िया साहित्य निश्चित रूप से घट रहा है हालांकि लेखकों और पत्रिकाओं की संख्या बढ़ गई है। पिछले तीन दशकों की विरासत में मिले हमारे समृद्ध साहित्य की प्रवृत्ति कमजोर होती जा रही है। कविताएं कमज़ोर हो गई है। कहानियां भले ही बेहतर हो रही हैं, लेकिन उनमें भी सशक्त साहित्यिक पुल का अभाव है। निबंध और महत्वपूर्ण appraisals लगभग गायब हो गए है। किसी भी लेखक में पाठकों को आकर्षित करने की पर्याप्त शक्तिशाली शैली नहीं है। पुस्तकें बिक नहीं रही है, फिर भी पहले की तुलना में कहीं अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं। इसका कारण यह है लेखक अपने पैसों से पुस्तकें छपवाते है और अन्य लेखकों को चाहे जानते है या नहीं, उन्हें तोहफे के रूप में देते हैं। वास्तव में यह अंधकारमय तस्वीर है। मुझे इस बात का गहरा अनुभव हो रहा है।
अब मैं इनके पीछे कारण का जिक्र करूंगी। क्योंकि यह इसलिए है कि साहित्य में सरकारी अधिकारियों का प्रभुत्व है और वे अच्छे साहित्य और सरकारी एजेंसी जो वास्तविक साहित्य को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है, उनके बीच अवरोध के रूप में खड़े हैं। मेरिट की गिनती नहीं है, क्योंकि लॉबी बहुत मजबूत है। अब ऐसी स्थिति मंच पर आ गई है जहां इन पेरवियों के द्वारा अच्छे साहित्य को दबाने और अपने स्वयं की प्रकाशित सामग्री को बढ़ावा देने के लिए एक सक्रिय दबाव डाला जाता है। किसी भी लॉबी से साहित्य को आजाद कराने के लिए मैं आवश्यक मदद उपलब्ध कराने के लिए हमेशा तैयार हूँ। केवल तीन फीसदी भारत के लोग सरकारी सेवाओं में हैं, ओडिशा के असली साहित्य को दबाकर दूर करने में सक्षम नहीं होने चाहिए। कई उन प्रतिभाओं ने लेखन बंद कर दिया है, जब उन्हें मान्यता नहीं मिली जिनके वे वास्तविक हकदार थे। आधुनिक साहित्य में मैं मुख्य रूप से आदिवासी साहित्य का उल्लेख करूंगी, जो उड़ीसा में सबसे उपेक्षित क्षेत्र है। अधिकांश आदिवासी साहित्य उनकी जीवन शैली से सीधे जुड़ा हुआ है और इसलिए वह बचा हुआ है, उनके पास शब्द है, आवाज है, लेकिन दुर्भाग्य से उनके पास कोई लिपि नहीं है। (लिपि क्या है?) विडंबना की बात है कि यद्यपि आदिवासी और ग्रामीण लोग सरकार के चुनाव में प्रमुख भूमिका अदा करते है, मगर उन्हें लाभ का हिस्सा कभी नहीं मिलता। कभी भी उन्हें प्रोत्साहित नहीं किया जाता, ना ही पदोन्नत किया जाता हैं या अपनी साहित्यिक कृतियों के लिए विदेश में प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा जाता है। भीम भोई आदिवासी कवि की प्रसिद्ध लाइनें आज संयुक्त राष्ट्र में प्रकाश डालती है "praninka Arata dukha apramita" लेकिन किसी भी आदिवासी लेखक को सरकार द्वारा विदेशों में इन कविताओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया। यह बदलना होगा ।
प्रश्न 18. क्या आप अपनी साहित्यिक यात्रा में किसी सपने (पुस्तक) की परियोजना रखती है, जो अभी तक साकार नहीं हुआ है?
उत्तर:- मैं पिछले साठ वर्षों में हमारी संस्कृति में क्षय के बारे में लिखने का सपना देखती हूँ। क्या गलत हो गया, और क्यों? सवाल मुझे परेशान करता रहता है। हो सकता है कि यह मेरे उपन्यास में प्रतिबिंबित हो, हो सकता है यह एक विशेष रूप से अनुसंधान कार्य बने। लेकिन यह सवाल मुझे परेशान करता रहता है ।
प्रश्न 19. आपने अंग्रेजी, ओड़िया, असमिया और हिन्दी में दुर्लभ विशेषज्ञता कैसे विकसित की ?
उत्तर:- मुझे नहीं लगता कि मुझे किसी भी क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल है । केवल जब मेरा कोई काम प्रकाशित होता है तो मुझे लगता है कि यह अच्छा होना चाहिए या इसे दूर फेंक दिया जाना चाहिए। ओडिया मेरी मातृभाषा है, स्वाभाविक रूप से मैं अपने आप को इस भाषा में बहुत बेहतर व्यक्त करने में सक्षम हूँ। असमिया के बारे में, मैं असम की समृद्धि से मोहित हो गई थी। किसी राज्य की साहित्यिक कृतियों को पढ़ने का मतलब उस जगह और वहाँ के लोगों के बारे में जानकारी प्राप्त करना है। और भाषा सीखने के लिए इसे पढ़ना आवश्यक है। मुझे असम से इतना प्यार था कि मैं अपने आप असमिया भाषा सीखी और जब मैंने पर्याप्त समझ प्राप्त की, तब ओड़िया में अनुवाद करने का प्रयास किया ताकि अपने लोगों के साथ समृद्ध साहित्यिक कृतियों को बाँट सकूँ। मैं असमिया भाषा में अनुवाद नहीं करती हूँ लेकिन अंग्रेजी एक दूसरी भाषा है। मैं ज्यादातर वाणिज्यिक कारणों से अंग्रेजी में लेख लिखती हूँ। मेरे पास कोई जॉब नहीं है। लेखन पर मेरी आजीविका चलती है। एक स्वतंत्र लेखक के रूप में यह माध्यम मेरी आय का एक स्रोत है। मैंने हमेशा माना है कि सरकारी अधिकारी वास्तविक लेखक नहीं बना सकते। खुशी और दर्द हाथ में हाथ मिलाकर नहीं चल सकते। यही कारण है कि मैं अंग्रेजी में लिखती हूँ। आप देख सकते हैं कि इन तीन भाषाओं का सहयोग स्वैच्छिक नहीं है। यह बस हो गया और यह मेरे लेखिका के रूप को प्रभावित नहीं करता है।
प्रश्न 20. एक लेखक के रूप में, आप भारत को कहाँ देखना चाहती है या किस भारत का सपना देखती है?
उत्तर:- मैं मनन करती हूँ कि यह दुनिया अच्छे मनुष्यों की है। आज हमारी दुनिया राजनीतिक और आर्थिक अवसरवादियों के बीच विभाजित है। मानवता अपना महत्व खो रही है। रियल भारत स्वतंत्र देश के लक्ष्यों से काफी दूर है जहां हर भारतीय गर्व से अपना सिर उठा सके। हमें इंडिया और भारत के बीच एक पुल का निर्माण करना चाहिए। इंडिया और भारत के बीच एक लंबी दूरी है। मैं भारत के लिए वास्तविक स्वतंत्रता चाहती हूँ ।
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