19. मेरी पहली विदेश यात्रा
सितंबर 2011 को सृजनगाथा वेब मेगज़ीन के संपादक श्रदेय जयप्रकाश मानस के ईमेल द्वारा दिसंबर 2011 में आयोजित होने वाले चतुर्थ अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन में हिस्सा लेने का आमंत्रण मिला तो खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। इस सम्मेलन में देश के वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ-साथ नए रचनाकारों को भी सम्मानित किया जाना था, उनमे सृजन-श्री के लिए मेरा नाम भी चयनित हुआ था। इसलिए तुरंत ही मैंने इस विदेश-यात्रा की विधिवत अनुमति के लिए हमारे कंपनी के अध्यक्ष-सह-प्रबन्धक निदेशक द्वारा मेरा आवेदन-पत्र शीर्षस्थ कंपनी मुख्यालय को भिजवा दिया। मगर जाने के दिन तक कोई अनुमति प्राप्त नहीं होने के कारण मन कुछ बुझा हुआ था। आखिरकर मैंने अपने खर्चे तथा छुट्टियों पर 15 दिसंबर 2011 की शाम को भुवनेश्वर से कोलकाता के लिए उड़ान भरी, जहां रात्रि एयरपोर्ट पर ही विश्राम किया।
पहला दिन (16.12.11) :-
लगभग सुबह आठ बजे के देश के तीस विख्यात साहित्यकारों का दल अपने साजो-सामान के साथ वहाँ एकत्रित हुआ। वहाँ पता चला कि दिल्ली के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ॰ सुधीर सक्सेना तथा आउटलुक पत्रिका की सह-संपादिका गीता श्री दिल्ली से सीधे ही थाईलेंड पहुंचेंगी। दिन को 11 बजे के लगभग भारतीय रचनाकारों के इस जत्थे ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से बैंकॉक के लिए उड़ान भरी, जो भारतीय समय के अनुसार 1 बजे और थाईलेंड के समयानुसार 3 बजे बैंकॉक के स्वर्णभूमि हवाई अड्डे पर समाप्त हुई। उड़ान के दौरान बीच-बीच में क्रिएटिव ट्रेवल्स के मालिक तथा इस विदेश यात्रा के समन्वयक रायपुर के विक्की मल्होत्रा करेंसी बदलने के नियम-कानून तथा वीसा संबन्धित कागजी कार्रवाइयों के बाबत में लगातार मार्ग-दर्शन कर रहे थे। स्वर्णभूमि एयरपोर्ट पर ‘वीसा ऑन एराइवल’ की सारी औपचारिकाताएँ पूरी कर लेने के उपरांत छतीसगढ़ प्रेस क्लब के नाम से पहचाने जानेवाले इस दल को पटाया ले जाया जाना था। एयरपोर्ट के बाहर एक नयी बस के साथ एक अधेड़ वयस के गाइड ने हाथ में केसरिया रंग की झंडी पकड़े मुस्कराते हुए हमारा स्वागत किया थाई भाषा में– स्वादीखाप टू थाईलेंड (थाईलेंड में आपका स्वागत है) सर्वप्रथम उसने अपना परिचय दिया और अपना नाम यायोन योगी बताया। बस में सामान रखकर हम पटाया की ओर रवाना हो गए। आधे रास्ते भर गाइड थाईलेंड की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं विविध पर्यटन स्थलों के बारे में अङ्ग्रेज़ी में बताता जा रहा था, जिसका अनुवाद इस प्रकार है :-
“ यूं तो पूरे थाईलैंड सबसे ज्यादा अपने समुद्र तटों के लिए ही लोकप्रिय है, लेकिन राजधानी बैंकाक तट से दूर है। बैंकाक का सबसे निकट समुद्री तट 80 किलोमीटर दूर चोनबुरी में है। यह इलाका प्राकृतिक संसाधनों व खूबसूरत बीचों से भरपूर है। आमतौर पर बैंकाकवासी इस जगह का इस्तेमाल अपनी छोटी-मोटी छुट्टियों के लिए करते हैं। बैंकाक से लगभग 170 किलोमीटर दूर थाईलैंड की खाड़ी के पूर्वी तट पर पट्टाया है। पिछली सदी के साठ के दशक में यह महज मछुआरों का एक गांव हुआ करता था। अप्रैल 1961 में वियतनाम के खिलाफ अमेरिकी जंग में हिस्सा लेने वाले लगभग सौ सैनिकों का जत्था यहां आराम करने के लिए आया। तभी से यह पर्यटन-स्थल के रूप में अपनी धाक जमाने लगा। अब फुकेट की ही तरह यह भी दक्षिणपूर्व एशिया के सबसे पसंदीदा पर्यटन स्थलों में से एक है। एक अनुमान के अनुसार यहां हर साल पांच लाख के लगभग पर्यटक आते हैं। यह वो जगह है जहां सूर्योदय से सूर्यास्त तक आप अंतहीन गतिविधियों में शिरकत कर सकते हैं- हाथी की सवारी कर सकते हैं, ऑटोमैटिक मिनी बाइक या भारी-भरकम क्रूज बाइक या फिर बहुरंगी कनवर्टिबल जीपों पर हाथ आजमा सकते हैं। हवाई खेलों व पानी से जुड़ी तमाम गतिविधियां तो हैं ही। लेकिन यदि आप कुछ न करना चाहें तो सिर्फ शांत माहौल में रिलैक्स भी कर सकते हैं। मुस्कुराते हुए लोगों के देश थाईलैंड को स्माइलिंग कंट्री कहना गलत नहीं लगता। पर्यटकों के स्वागत में मुस्कराहट बिखरते यहां के लोग बेहद शांतिप्रिय हैं। यहां की अधिकतर आबादी बौद्ध धर्मावलंबी है। इसीलिए कारण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यहां कई तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं। अत्याधुनिक इमारतें, व्यस्ततम बिजनेस एवं शॉपिंग मॉल और बड़े-बड़े एक्सप्रेस हाइवे हैं। यहां विदेशी पर्यटकों की सुविधा का काफी खयाल रखा जाता है।”
शेष आधे रास्ते भर आपस में फिल्मी गानों, शेरो-शायरी तथा चुटकलों का दौर आरंभ हो गया। शाम को साठे सात बजे के करीब हम हमारे गंतव्य निवास स्थान ‘मंत्रपुरा रिसोर्ट’ पहुंचे। बस से अपना सामान उतारकर होटल में रखकर आधा घंटा विश्राम लेकर हमे रात्रि भोज के लिए बस से पास में ही स्थित ‘मुंबई मेजिक फूड एंड फन’ नामक भोजनालय में ले जाया गया। वहाँ बहुत बड़े हाल में भारतीय परिवेश में सुंदर ढंग से सजे चावल, दाल, पूरी, आलूगोभी की सब्जी, दही-रायता तथा सूजी का हलवा देखकर कहीं इस बात का एहसास नहीं हुआ कि इस वक्त हम विदेश की धरती पर है अथवा दूसरी थाई संस्कृति के साथ तालमेल बैठाने या समन्वय स्थापित करने की कोई आवश्यकता भी है। दुनियाभर से लोग तफरीह की असीम संभावनाएं लिए यहां खींचे चले आते हैं। पट्टाया में सैलानियों को हर सर्वोत्तम चीज उपलब्ध कराई जाती है। हर चीज का मतलब यहां हर उस चीज से है जिसकी कल्पना कोई व्यक्ति अपनी छुट्टियों को आनंददायक बनाने के लिए कर सकता है-सुकून,मनोरंजन,खेल,साइटसीइंग,मौज-मस्ती। पट्टाया हर किस्म के पर्यटक के लिए स्वर्ग सरीखा है।
खाना खाने के बाद कुछ साहित्यकारों ने वहाँ की नाइट लाइफ का आनंद उठाने के लिए वाकिंग स्ट्रीट की ओर प्रस्थान किया। यहां की नाइटलाइफ काफी चर्चित है और कुछ मायनों में काफी बदनाम भी। यहां रात-भर चलने वाले रेस्तरां हैं,बार,थिएटर,कैबरे, नाइट क्लब, डिस्को, विभिन्न मसाज पार्लर जैसे सुप्राणी, कोरल, सुखोथाई वगैरह सब-कुछ हैं। यहां की एक और अद्भुत चीज शॉपिंग है जो बेरोकटोक दिन-रात, चौबीसों घंटे की जा सकती है। पट्टाया के बारे में सबसे रोचक बात यह है कि यहां आने वाले लोगों में काफी बड़ी संख्या उन विदेशी पर्यटकों की है जो यहां बार-बार आते हैं।
दूसरा दिन (17.12.11) :-
आज सुबह पटाया शहर का भ्रमण करते हुए हम कोराल आइलैंड की ओर रवाना हुए। यह हिस्सा हरे-भरे पहाड़ों व नदी घाटियों से घिरा है। यह सुंदर सागरतट है, जहां आप कोरल आइलैंड के आश्चर्यजनक संसार से रूबरू हो सकते हैं। पारदर्शी तल वाली बोट में बैठ समुद्र के भीतर के अद्भुत दृश्यों को देखना रोमांचक होता है।
पटाया शहर की साफ सफाई, चौड़े विशाल रास्ते,भूल-भूलैया जैसे ऑक्टोपसनुमा फ्लाईओवर,गगनचुंबी इमारतें तथा हरियाली लिए प्राकृतिक दृश्यों का आनंद कुछ अनोखा ही था। पटाया बीच पर पहुँचने के बाद हमारे गाइड ने हमें पहले पहल पैरा-ग्लाइडिंग (पैरासैलिंग) वाली जगह पर ले गया, जहां आदमी के कमर में पैराशूट बांधकर मोटर संचालित नाव के कोने से रस्सी द्वारा पैराशूट से जोड़ा जाता था, फिर तेज रफ्तार से नाव चलाकर पैरा-ग्लाइडिंग (पैरासैलिंग) की जाती थी अर्थात् आदमी इसके सहयोग से हवा में उड़ता था। फिर एक अन्य बोट द्वारा हमें एक दूसरे बड़े जहाज पर ले जाया गया, जिसके पिछले हिस्से में ऑक्सीज़न सिलिंडर पहनकर गोताखोरों के सहयोग से कुछ साहसी पर्यटक समुद्र के भीतर प्रवाल के जमाव देखने तथा समुद्री मछलियों को खाना खिलाने का लुत्फ उठा रहे थे। हृदय-रोग, अस्थमा और उच्च-रक्तचाप वाले व्यक्तियों के लिए यह जोखिम भरा कार्य करने की मनाही हेतु एक तख्ती पर साफ निर्देश लिखे हुए थे। हमारे दल के किसी भी सदस्य ने शायद यही सोचकर कोई खतरा उठाना ठीक नहीं समझा। कुछ समय यहाँ रूककर शिपिंग का आनंद उठाते हुए हमें दूसरे तट पर ले जाया गया, जहां हिलोरे खाती लहरों के साथ स्नान कर हमने एक अनोखी ताजगी का अनुभव किया। तट के आकार के अनुसार उनका नाम नकलुया बे,क्रेसकेंट मून बे, मून बे इत्यादि रखा गया था।
तीसरा दिन (18.12.11 ) :-
तीसरे दिन हमने मंत्रपुरा रिज़ॉर्ट से नाश्ता करके नून-नूच गाँव की ओर प्रस्थान किया। एक ख्वाब-सा गाँव। असली थाई संस्कृति को समझने का यहाँ मौका मिलता हैं। यहाँ बने भव्य आडिटोरियम में थाई सांस्कृतिक कार्यकर्मों की झलकें देखने के बाद हाथियों द्वारा फुटबाल और वॉलीबाल खेलना देख हमारे लिए किसी अचरज से कम नहीं था। सामने तरह-तरह के रंगीन तोते, रस्सी से बंधे खुले शेर और थाई संस्कृति को प्रदर्शित करने वाली सुंदर तरुणियों के साथ स्टेज पर फोटो खिंचवाने का हमारे दल ने खूब आनंद उठाया। उसके बाद हमने दुनिया की मशहूर सबसे बड़ी जेम्स गैलेरी–वर्ल्ड जेम्स कंपनी प्रा॰ लिमिटेड देखी। बहुत ही खूबसूरत डायमंड, नीलम, पुखराज और समुद्री मोतियों से बने सुंदर जवाहरातों से भरी यह गैलेरी अपने आप में अनुपम थी, भले ही यहाँ की कीमतें आसमान छूती हो। सबसे बड़े ताज्जुब की बात थी हमारे लिए, इस कंपनी का सहायक मैनेजर आमीन खान का फर्राटेदार हिन्दी बोलना। थाईलेंड के नागरिक होने के साथ-साथ अमेरिका से शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी धाराप्रवाह हिन्दी बोलने का राज उन्होने भारत के पड़ोसी देश अफगान का मूल होना बताया। कुछ रचनाकारों ने यहाँ अपनी जेब के अनुसार छोटी-मोटी खरीददारी की। फिर हमें दोपहर का भोजन करने के लिए हड़प्पा इंडियन रेस्टोरेन्ट में ले जाया गया। यहाँ का स्वादिष्ट भारतीय भोजन पाकर आत्मा तृप्त हो गयी। खाना खाने के कुछ समय बाद ‘मुंबई मेजिक फूड एंड फन’ नामक होटल के सभागार में एक भव्य समारोह में पुस्तक विमोचन तथा काव्य-पाठ का आयोजन रखा गया। इस अवसर पर हिन्दी साहित्य को ब्लॉगिंग से जोड़ने वाली पत्रिका वटवृक्ष के तृतीय अंक का लोकार्पण भी हुआ, जिसमें मंचासीन रहे पत्रकार वो कवि सुधीर सक्सेना,आउटलुक पत्रिका की सह संपादक गीता श्री,नागपुर विवि के विभागाध्यक्ष, हिन्दी प्रमोद शर्मा, जनवादी आलोचक डॉ. प्रेम दुबे, पत्रकार संदीप शर्मा, कथाकार संतोष श्रीवास्तव, रवीन्द्र प्रभात आदि। इसके बाद दिनेश कुमार माली की पुस्तक बंद दरवाजा (साहित्य अकादमी से सम्मानित ओडिया लेखिका सरोजिनी साहू के कथा-संग्रह का हिन्दी अनुवाद) का भी विमोचन हुआ। इनके अलावा,इस अवसर पर सम्मानित होने वाले साहित्यकार थे- वरिष्ठ कवि व 'दुनिया इन दिनों' के प्रधान संपादक डॉ. सुधीर सक्सेना, युवा पत्रकार व दैनिक भारत भास्कर (रायपुर) के संपादक श्री संदीप तिवारी, मुंबई की कथाकार संतोष श्रीवास्तव, संस्कृति कर्मी सुमीता केशवा,आधारशिला के संपादक दिवाकर भट्ट (देहरादून), नागपुर विवि के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रमोद कुमार शर्मा आदि ।
चतुर्थ अंतर-राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन के इस कार्यक्रम के समापन के बाद हमारे में से कुछेक टिफनी शो देखने गए तो कुछ लोटस माल में खरीददारी करने। रास्ते में पैदल जाते समय मेरा ध्यान ऐसे नामपट्टों पर पड़ा जिनके शब्द हिन्दी के थे जैसे ‘बैंक ऑफ अयोध्या’,‘कंचनबुरी’, ‘रसायन’,‘सुखोथाई’ इत्यादि। ये ही नहीं, इससे पहले भी कुछ शब्द हिन्दी भाषा की याद दिला रहे थे। जहां थाईलेंड के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम स्वर्णभूमि तो अपने आप में हिन्दी का परिचायक है, वहीं हमारी होटल का नाम ‘मंत्रपुरा रिज़ॉर्ट’ भी मानो जैसे वैदिक मंत्रों से निकला हो। गाइड से इस बारे में जानकारी चाही तो उसने बताया कि थाईलैंड यात्रा में रामायण, श्रीराम तथा रामलीला से जुड़ी बहुत-सी बातें यहाँ देखने को मिलती हैं। थाईलैंड की थम्मासाट यूनिवर्सिटी के इंडिया स्टडीज सेंटर की निदेशक प्रो. नोंगलुक्साना थिपासवासदी बताते हैं कि थाईलैंड में भी एक अयोध्या है। यही नहीं, यहां श्रीराम के पुत्र लव के नाम पर लवपुरी (लोपबुरी) भी है। थाईलैंड के नागरिकों का यह गहरा विश्वास है कि रामायण की कई घटनाएं उनके अपने देश में घटी थी। थाईलैंड की एक नदी का नाम भी सरयू है। दिलचस्प बात यह है कि भारत की तर्ज पर ही वहां भी सरयू अयोध्या के निकट ही बहती है। वस्तुत: थाईलैंड की सांस्कृतिक जीवनधारा श्रीराम की जीवनदृष्टि में पूर्णत: समाहित है।
चौथा दिन (19.12.11 ) :-
आज हम नाश्ता करने के बाद सुबह-सुबह मंत्रपुरा होटल छोडकर थाईलेंड की राजधानी बैंकाक देखने के लिए रवाना हो गए। थाईलैंड पर्यटन की शुरुआत बैंकाक से होती है। वैसे तो बैंकाक एक रंगीन मिजाज का शहर है, पर यहां कई भव्य बौद्ध मंदिर भी हैं, जिन्हें वाट कहा जाता है। बैंकाक का ग्रैंड पैलेस वास्तव में दर्शनीय है। इसी परिसर में एमरल्ड बौद्ध मंदिर है, जिसमें थाईलैंड की सबसे पवित्र मानी जाने वाली बुद्ध प्रतिमा है। दूसरा वाट अरुण अर्थात सूर्योदय मंदिर भी खास तौर से प्रसिद्ध है। नदी के दूसरे छोर पर स्थित इस मंदिर का वास्तुशिल्प अद्भुत है। किसी टॉवर के समान दिखता इसका ऊंचा शिखर दूर से ही सैलानियों को आकर्षित करता है। हमारे निश्चित कार्यक्रम के अनुसार हमे रास्ते में पड़ने वाले दो मंदिर वाट इन तथा वाट हुयालांपोंग के दर्शन करने थे।
गाइड योयोन योगी के अनुसार
“भगवान बुद्ध के प्रभाव वाले इस देश में राम और बुद्ध के बीच कोई विभाजन रेखा दिखाई ही नहीं देती। इसका सबसे बड़ा प्रमाण बैंकाक स्थित शाही बुद्ध मंदिर है। जिसमें नीलम की मूर्ति है। यह मंदिर थाईलैंड के सुप्रसिद्ध मंदिरों में से एक है तथा दूर-दराज से श्रद्धालु यहां दर्शनार्थ आते हैं। इस मंदिर की दीवारों पर संपूर्ण रामकथा चित्रित है। यही नहीं, थाईलैंड की अपनी स्थानीय रामायण भी है। जिसे ‘रामकियेन’ के नाम से जाना जाता है। इस रामायण के रचियता नरेश राम प्रथम थे। उल्लेखनीय है कि उन्हीं के वंशज आज भी थाईलैंड में शासक हैं। थाईलैंड के विश्व प्रसिद्ध नेशनल म्यूजियम में भी श्रीराम के दर्शन सुगमतापूर्वक किए जा सकते हैं। वहां खड़े धनुर्धारी राम की आकर्षक प्रतिमा आगंतुकों को मंत्रमुग्ध करती है। वहां प्रस्तुत होने वाले शास्त्रीय नृत्यों में भी राम-कथा के अनेक प्रसंग प्रदर्शित किए जाते हैं। यहां रहने वाले भारतीय नागरिकों में भारतीय त्यौहारों के प्रति जितनी आस्था और विश्वास है, वह उनके आयोजनों के माध्यमों से साफ पता चलता है।
बौद्ध मान्यताओं का केंद्र बिंदु करुणा है और थाई जीवन पर इसका अमिट प्रभाव है। पंचशील, त्रिरत्न, कर्मसिद्धांत, गृहस्थी के लिए चार नियम, चार ब्रह्मविहार, समाज में एकता के लिए चार नियम, समस्त जीवन के लिए 38 नियम, इसी प्रकार शासक के लिए नियम या गुण, सम्राट के लिए नियम या गुण तथा मध्य मार्ग आदि इसके उदाहरण हैं। थाईलैंड के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रीदी कासेमसप वहां ऑरिएंटल कल्चरल अकादमी (प्राच्य संस्कृति प्रतिष्ठान) चलाते हैं। महात्मा गांधी एवं गुरुदेव रबीन्द्र नाथ टैगोर के चित्र उनके कक्ष में लगे हैं। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति के आधार स्तंभों, वेद, उपनिषद, गीता, पुराण तथा अन्य शास्त्रों के विधिवत अध्ययन के लिए अकादमी द्वारा चीनी व थाई भाषा के बाद संस्कृत भाषा का पाठ्यक्रम भी शुरू किया गया है।”
पहले-पहल हमें वाट इन मंदिर में ले जाया गया,जहां गौतम बुद्ध की विशालकाय खड़ी मूर्ति अपने आप में आकर्षण का केंद्र थी। तथा मंदिर के अंदर गौतम बुद्ध की ध्यानावस्था में बैठी हुई मूर्ति आध्यात्मिक मुस्कराहट बिखेरती हुई सभी सैलानियों को बरबस अपनी तरफ खींची जा रही थी। समय की कमी की वजह से दूसरे मंदिर का दर्शन नहीं कर पाये। सीधे दोपहर का भोजन लेने के लिए पाँच सितारा होटल फुरोमा में अपना सामान रखकर नजदीक में स्थित भारतीय भोजनालय ‘पंजाबी बाय नेचर’ में हम चले गए। उसके बाद हम लोग शॉपिंग के लिए इन्दिरा मार्केट, पेंटिप प्लाजा मार्केट की ओर रवाना हुए।हमने एक एक्सचेंज शॉप से भारतीय मुद्रा को थाईलेंड की मुद्रा- बाहट में बदलवा दिए। तीस हजार रुपए की जगह हमें मिला पंद्रह हजार बाहट। पहली बार रुपए के कमजोर होने का एहसास हुआ। सरकारी कर नहीं लगने की वजह से यहाँ एलसीडी तथा एलईडी टी.वी.काफी सस्ते थे। हमने भी 32” सैमसंग का एक एलईडी 11500/- बाहट अर्थात् 23000 रुपए में खरीदा, जिसकी भारत में कीमत लगभग 35000 रुपए के आसपास है। इस प्रकार एक एलईडी टीवी पर 12000/- रुपए की बचत हुई। रात्रिभोजन ‘पंजाबी बाय नेचर’ में करने के बाद होटल फुरोमा में लौट आए। मेरे रूममेट परिकल्पना के संपादक,साहित्यकार और ब्लॉगर किंग, रवींद्र प्रभात के साथ साहित्यिक-चर्चा करते-करते पता नहीं कब नींद की आगोश में समा गए।
पांचवा दिन (20.12.11):-
आज नाश्ता करने के बाद हमें मैरीन पार्क तथा सफारी वर्ल्ड देखने जाना था। निश्चित समय पर होटल फुरमा के सामने हमारी बस आ गयी। हम सभी ने अपने हेंड-बेग तथा डिजिटल कैमेरों के साथ बस में प्रवेश किया। मन में मैरीन पार्क के लुभावने दृश्यों को देखने की उत्सुकता जो भरी थी। यहाँ हमने ओरांग-उटांग (एक खास प्रजाति के बंदर) शो, काउ बॉय स्टंट शो, डॉल्फ़िन शो तथा सी-लायन (एक खास प्रकार की मछली) शो देखने का मजा लिया।हमारे लिए आश्चर्य की बात थी कि जो थाई भाषा हम नहीं समझ पाते,वह थाई भाषा, उनके संकेत तथा संगीत की थिरकन पर किस तरह ये दरियाई जानवर न केवल बाल तथा रिंग के माध्यम से करिश्माई करतब दिखा रहे थे, वरन अपने गिल पंख पीटकर अपनी खुशी और जीत का इजहार कर रहे थे। ये सब शो देखने के बाद हमें खुले अजायबघर में ले जाया गया जिसे आधुनिक लोकप्रिय भाषा में सफारी वर्ल्ड कहते हैं। यहाँ बहुत सारे जंगली जानवर शेर,भालू,हिरण,बारहसिंघा,ज़ेबरा तथा तरह-तरह की चिड़ियों को स्वच्छंद घूमते देख आदिकाल के किसी भयानक जंगल की याद आने लगी। यहीं नहीं,ओलिवर के उपन्यास ‘एनिमल फार्म’ की याद मानस पटल पर एक बार फिर तरो-ताजा हो गई।
दिन के अंत में यहाँ के मशहूर पेंटिप प्लाजा शॉप में जाने का पुनः एक सुअवसर प्राप्त हुआ, जहां से हमने आई-फोन, बच्चों के लिए प्ले स्टेशन, घर के लिए कुछ स्मृति चिन्ह तथा कुछ छोटे मोटे आर्टिफेक्ट खरीदे। यहाँ भी भारत की तरह कुछ हद तक बारगेनिंग की जा सकती है।
अंतिम दिन ( 21.12.11) :-
आज हम सभी को इस बात का दुख हो रहा था कि आज हमारा थाईलेंड टूर का अंतिम दिन था। सुबह 10 बजे अपना लगेज पैक करने के बाद हम होटल फुरामा से स्वर्णभूमि एयरपोर्ट की ओर रवाना हुए। लगभग तीन साढ़े तीन घंटे का रास्ता था। इस रास्ते को पार करते समय मैं अपने भारतीय मित्रों, परिजनों तथा संबंधियों को फोन करना नहीं भूल रहा था क्योंकि आज कुछ घंटों बाद थाईलेंड की ‘सिम’ स्थायी रूप से बंद हो जाएगी और मन में यह मलाल बना रहेगा कि विदेश की धरती से उन्हें फोन तक नहीं कर पाया। एयरपोर्ट पर सभी ने ढेरों फोटो खींची,कुछ छिट-पुट खरीददारी भी की। कुछ लोग डयूटी फ्री शॉप से शराब की बोतलें खरीदना नहीं भूलें। हमारी कोलकाता जाने वाली फ्लाइट ने शाम चार बजे थाईलेंड से उड़ान भरी तथा शाम ढलते-ढलते लगभग छ बजे के तकरीबन हम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस अंतर-राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचे। इस यात्रा ने मुझे न केवल एक नया देश देखने का मौका दिया बल्कि भविष्य में स्वतंत्र रूप से सफर करने के लिए आत्मविश्वास की नई लहर भी पैदा की ।
सितंबर 2011 को सृजनगाथा वेब मेगज़ीन के संपादक श्रदेय जयप्रकाश मानस के ईमेल द्वारा दिसंबर 2011 में आयोजित होने वाले चतुर्थ अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन में हिस्सा लेने का आमंत्रण मिला तो खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। इस सम्मेलन में देश के वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ-साथ नए रचनाकारों को भी सम्मानित किया जाना था, उनमे सृजन-श्री के लिए मेरा नाम भी चयनित हुआ था। इसलिए तुरंत ही मैंने इस विदेश-यात्रा की विधिवत अनुमति के लिए हमारे कंपनी के अध्यक्ष-सह-प्रबन्धक निदेशक द्वारा मेरा आवेदन-पत्र शीर्षस्थ कंपनी मुख्यालय को भिजवा दिया। मगर जाने के दिन तक कोई अनुमति प्राप्त नहीं होने के कारण मन कुछ बुझा हुआ था। आखिरकर मैंने अपने खर्चे तथा छुट्टियों पर 15 दिसंबर 2011 की शाम को भुवनेश्वर से कोलकाता के लिए उड़ान भरी, जहां रात्रि एयरपोर्ट पर ही विश्राम किया।
पहला दिन (16.12.11) :-
लगभग सुबह आठ बजे के देश के तीस विख्यात साहित्यकारों का दल अपने साजो-सामान के साथ वहाँ एकत्रित हुआ। वहाँ पता चला कि दिल्ली के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ॰ सुधीर सक्सेना तथा आउटलुक पत्रिका की सह-संपादिका गीता श्री दिल्ली से सीधे ही थाईलेंड पहुंचेंगी। दिन को 11 बजे के लगभग भारतीय रचनाकारों के इस जत्थे ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से बैंकॉक के लिए उड़ान भरी, जो भारतीय समय के अनुसार 1 बजे और थाईलेंड के समयानुसार 3 बजे बैंकॉक के स्वर्णभूमि हवाई अड्डे पर समाप्त हुई। उड़ान के दौरान बीच-बीच में क्रिएटिव ट्रेवल्स के मालिक तथा इस विदेश यात्रा के समन्वयक रायपुर के विक्की मल्होत्रा करेंसी बदलने के नियम-कानून तथा वीसा संबन्धित कागजी कार्रवाइयों के बाबत में लगातार मार्ग-दर्शन कर रहे थे। स्वर्णभूमि एयरपोर्ट पर ‘वीसा ऑन एराइवल’ की सारी औपचारिकाताएँ पूरी कर लेने के उपरांत छतीसगढ़ प्रेस क्लब के नाम से पहचाने जानेवाले इस दल को पटाया ले जाया जाना था। एयरपोर्ट के बाहर एक नयी बस के साथ एक अधेड़ वयस के गाइड ने हाथ में केसरिया रंग की झंडी पकड़े मुस्कराते हुए हमारा स्वागत किया थाई भाषा में– स्वादीखाप टू थाईलेंड (थाईलेंड में आपका स्वागत है) सर्वप्रथम उसने अपना परिचय दिया और अपना नाम यायोन योगी बताया। बस में सामान रखकर हम पटाया की ओर रवाना हो गए। आधे रास्ते भर गाइड थाईलेंड की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं विविध पर्यटन स्थलों के बारे में अङ्ग्रेज़ी में बताता जा रहा था, जिसका अनुवाद इस प्रकार है :-
“ यूं तो पूरे थाईलैंड सबसे ज्यादा अपने समुद्र तटों के लिए ही लोकप्रिय है, लेकिन राजधानी बैंकाक तट से दूर है। बैंकाक का सबसे निकट समुद्री तट 80 किलोमीटर दूर चोनबुरी में है। यह इलाका प्राकृतिक संसाधनों व खूबसूरत बीचों से भरपूर है। आमतौर पर बैंकाकवासी इस जगह का इस्तेमाल अपनी छोटी-मोटी छुट्टियों के लिए करते हैं। बैंकाक से लगभग 170 किलोमीटर दूर थाईलैंड की खाड़ी के पूर्वी तट पर पट्टाया है। पिछली सदी के साठ के दशक में यह महज मछुआरों का एक गांव हुआ करता था। अप्रैल 1961 में वियतनाम के खिलाफ अमेरिकी जंग में हिस्सा लेने वाले लगभग सौ सैनिकों का जत्था यहां आराम करने के लिए आया। तभी से यह पर्यटन-स्थल के रूप में अपनी धाक जमाने लगा। अब फुकेट की ही तरह यह भी दक्षिणपूर्व एशिया के सबसे पसंदीदा पर्यटन स्थलों में से एक है। एक अनुमान के अनुसार यहां हर साल पांच लाख के लगभग पर्यटक आते हैं। यह वो जगह है जहां सूर्योदय से सूर्यास्त तक आप अंतहीन गतिविधियों में शिरकत कर सकते हैं- हाथी की सवारी कर सकते हैं, ऑटोमैटिक मिनी बाइक या भारी-भरकम क्रूज बाइक या फिर बहुरंगी कनवर्टिबल जीपों पर हाथ आजमा सकते हैं। हवाई खेलों व पानी से जुड़ी तमाम गतिविधियां तो हैं ही। लेकिन यदि आप कुछ न करना चाहें तो सिर्फ शांत माहौल में रिलैक्स भी कर सकते हैं। मुस्कुराते हुए लोगों के देश थाईलैंड को स्माइलिंग कंट्री कहना गलत नहीं लगता। पर्यटकों के स्वागत में मुस्कराहट बिखरते यहां के लोग बेहद शांतिप्रिय हैं। यहां की अधिकतर आबादी बौद्ध धर्मावलंबी है। इसीलिए कारण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यहां कई तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं। अत्याधुनिक इमारतें, व्यस्ततम बिजनेस एवं शॉपिंग मॉल और बड़े-बड़े एक्सप्रेस हाइवे हैं। यहां विदेशी पर्यटकों की सुविधा का काफी खयाल रखा जाता है।”
शेष आधे रास्ते भर आपस में फिल्मी गानों, शेरो-शायरी तथा चुटकलों का दौर आरंभ हो गया। शाम को साठे सात बजे के करीब हम हमारे गंतव्य निवास स्थान ‘मंत्रपुरा रिसोर्ट’ पहुंचे। बस से अपना सामान उतारकर होटल में रखकर आधा घंटा विश्राम लेकर हमे रात्रि भोज के लिए बस से पास में ही स्थित ‘मुंबई मेजिक फूड एंड फन’ नामक भोजनालय में ले जाया गया। वहाँ बहुत बड़े हाल में भारतीय परिवेश में सुंदर ढंग से सजे चावल, दाल, पूरी, आलूगोभी की सब्जी, दही-रायता तथा सूजी का हलवा देखकर कहीं इस बात का एहसास नहीं हुआ कि इस वक्त हम विदेश की धरती पर है अथवा दूसरी थाई संस्कृति के साथ तालमेल बैठाने या समन्वय स्थापित करने की कोई आवश्यकता भी है। दुनियाभर से लोग तफरीह की असीम संभावनाएं लिए यहां खींचे चले आते हैं। पट्टाया में सैलानियों को हर सर्वोत्तम चीज उपलब्ध कराई जाती है। हर चीज का मतलब यहां हर उस चीज से है जिसकी कल्पना कोई व्यक्ति अपनी छुट्टियों को आनंददायक बनाने के लिए कर सकता है-सुकून,मनोरंजन,खेल,साइटसीइंग,मौज-मस्ती। पट्टाया हर किस्म के पर्यटक के लिए स्वर्ग सरीखा है।
खाना खाने के बाद कुछ साहित्यकारों ने वहाँ की नाइट लाइफ का आनंद उठाने के लिए वाकिंग स्ट्रीट की ओर प्रस्थान किया। यहां की नाइटलाइफ काफी चर्चित है और कुछ मायनों में काफी बदनाम भी। यहां रात-भर चलने वाले रेस्तरां हैं,बार,थिएटर,कैबरे, नाइट क्लब, डिस्को, विभिन्न मसाज पार्लर जैसे सुप्राणी, कोरल, सुखोथाई वगैरह सब-कुछ हैं। यहां की एक और अद्भुत चीज शॉपिंग है जो बेरोकटोक दिन-रात, चौबीसों घंटे की जा सकती है। पट्टाया के बारे में सबसे रोचक बात यह है कि यहां आने वाले लोगों में काफी बड़ी संख्या उन विदेशी पर्यटकों की है जो यहां बार-बार आते हैं।
दूसरा दिन (17.12.11) :-
आज सुबह पटाया शहर का भ्रमण करते हुए हम कोराल आइलैंड की ओर रवाना हुए। यह हिस्सा हरे-भरे पहाड़ों व नदी घाटियों से घिरा है। यह सुंदर सागरतट है, जहां आप कोरल आइलैंड के आश्चर्यजनक संसार से रूबरू हो सकते हैं। पारदर्शी तल वाली बोट में बैठ समुद्र के भीतर के अद्भुत दृश्यों को देखना रोमांचक होता है।
पटाया शहर की साफ सफाई, चौड़े विशाल रास्ते,भूल-भूलैया जैसे ऑक्टोपसनुमा फ्लाईओवर,गगनचुंबी इमारतें तथा हरियाली लिए प्राकृतिक दृश्यों का आनंद कुछ अनोखा ही था। पटाया बीच पर पहुँचने के बाद हमारे गाइड ने हमें पहले पहल पैरा-ग्लाइडिंग (पैरासैलिंग) वाली जगह पर ले गया, जहां आदमी के कमर में पैराशूट बांधकर मोटर संचालित नाव के कोने से रस्सी द्वारा पैराशूट से जोड़ा जाता था, फिर तेज रफ्तार से नाव चलाकर पैरा-ग्लाइडिंग (पैरासैलिंग) की जाती थी अर्थात् आदमी इसके सहयोग से हवा में उड़ता था। फिर एक अन्य बोट द्वारा हमें एक दूसरे बड़े जहाज पर ले जाया गया, जिसके पिछले हिस्से में ऑक्सीज़न सिलिंडर पहनकर गोताखोरों के सहयोग से कुछ साहसी पर्यटक समुद्र के भीतर प्रवाल के जमाव देखने तथा समुद्री मछलियों को खाना खिलाने का लुत्फ उठा रहे थे। हृदय-रोग, अस्थमा और उच्च-रक्तचाप वाले व्यक्तियों के लिए यह जोखिम भरा कार्य करने की मनाही हेतु एक तख्ती पर साफ निर्देश लिखे हुए थे। हमारे दल के किसी भी सदस्य ने शायद यही सोचकर कोई खतरा उठाना ठीक नहीं समझा। कुछ समय यहाँ रूककर शिपिंग का आनंद उठाते हुए हमें दूसरे तट पर ले जाया गया, जहां हिलोरे खाती लहरों के साथ स्नान कर हमने एक अनोखी ताजगी का अनुभव किया। तट के आकार के अनुसार उनका नाम नकलुया बे,क्रेसकेंट मून बे, मून बे इत्यादि रखा गया था।
तीसरा दिन (18.12.11 ) :-
तीसरे दिन हमने मंत्रपुरा रिज़ॉर्ट से नाश्ता करके नून-नूच गाँव की ओर प्रस्थान किया। एक ख्वाब-सा गाँव। असली थाई संस्कृति को समझने का यहाँ मौका मिलता हैं। यहाँ बने भव्य आडिटोरियम में थाई सांस्कृतिक कार्यकर्मों की झलकें देखने के बाद हाथियों द्वारा फुटबाल और वॉलीबाल खेलना देख हमारे लिए किसी अचरज से कम नहीं था। सामने तरह-तरह के रंगीन तोते, रस्सी से बंधे खुले शेर और थाई संस्कृति को प्रदर्शित करने वाली सुंदर तरुणियों के साथ स्टेज पर फोटो खिंचवाने का हमारे दल ने खूब आनंद उठाया। उसके बाद हमने दुनिया की मशहूर सबसे बड़ी जेम्स गैलेरी–वर्ल्ड जेम्स कंपनी प्रा॰ लिमिटेड देखी। बहुत ही खूबसूरत डायमंड, नीलम, पुखराज और समुद्री मोतियों से बने सुंदर जवाहरातों से भरी यह गैलेरी अपने आप में अनुपम थी, भले ही यहाँ की कीमतें आसमान छूती हो। सबसे बड़े ताज्जुब की बात थी हमारे लिए, इस कंपनी का सहायक मैनेजर आमीन खान का फर्राटेदार हिन्दी बोलना। थाईलेंड के नागरिक होने के साथ-साथ अमेरिका से शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी धाराप्रवाह हिन्दी बोलने का राज उन्होने भारत के पड़ोसी देश अफगान का मूल होना बताया। कुछ रचनाकारों ने यहाँ अपनी जेब के अनुसार छोटी-मोटी खरीददारी की। फिर हमें दोपहर का भोजन करने के लिए हड़प्पा इंडियन रेस्टोरेन्ट में ले जाया गया। यहाँ का स्वादिष्ट भारतीय भोजन पाकर आत्मा तृप्त हो गयी। खाना खाने के कुछ समय बाद ‘मुंबई मेजिक फूड एंड फन’ नामक होटल के सभागार में एक भव्य समारोह में पुस्तक विमोचन तथा काव्य-पाठ का आयोजन रखा गया। इस अवसर पर हिन्दी साहित्य को ब्लॉगिंग से जोड़ने वाली पत्रिका वटवृक्ष के तृतीय अंक का लोकार्पण भी हुआ, जिसमें मंचासीन रहे पत्रकार वो कवि सुधीर सक्सेना,आउटलुक पत्रिका की सह संपादक गीता श्री,नागपुर विवि के विभागाध्यक्ष, हिन्दी प्रमोद शर्मा, जनवादी आलोचक डॉ. प्रेम दुबे, पत्रकार संदीप शर्मा, कथाकार संतोष श्रीवास्तव, रवीन्द्र प्रभात आदि। इसके बाद दिनेश कुमार माली की पुस्तक बंद दरवाजा (साहित्य अकादमी से सम्मानित ओडिया लेखिका सरोजिनी साहू के कथा-संग्रह का हिन्दी अनुवाद) का भी विमोचन हुआ। इनके अलावा,इस अवसर पर सम्मानित होने वाले साहित्यकार थे- वरिष्ठ कवि व 'दुनिया इन दिनों' के प्रधान संपादक डॉ. सुधीर सक्सेना, युवा पत्रकार व दैनिक भारत भास्कर (रायपुर) के संपादक श्री संदीप तिवारी, मुंबई की कथाकार संतोष श्रीवास्तव, संस्कृति कर्मी सुमीता केशवा,आधारशिला के संपादक दिवाकर भट्ट (देहरादून), नागपुर विवि के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रमोद कुमार शर्मा आदि ।
चतुर्थ अंतर-राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन के इस कार्यक्रम के समापन के बाद हमारे में से कुछेक टिफनी शो देखने गए तो कुछ लोटस माल में खरीददारी करने। रास्ते में पैदल जाते समय मेरा ध्यान ऐसे नामपट्टों पर पड़ा जिनके शब्द हिन्दी के थे जैसे ‘बैंक ऑफ अयोध्या’,‘कंचनबुरी’, ‘रसायन’,‘सुखोथाई’ इत्यादि। ये ही नहीं, इससे पहले भी कुछ शब्द हिन्दी भाषा की याद दिला रहे थे। जहां थाईलेंड के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम स्वर्णभूमि तो अपने आप में हिन्दी का परिचायक है, वहीं हमारी होटल का नाम ‘मंत्रपुरा रिज़ॉर्ट’ भी मानो जैसे वैदिक मंत्रों से निकला हो। गाइड से इस बारे में जानकारी चाही तो उसने बताया कि थाईलैंड यात्रा में रामायण, श्रीराम तथा रामलीला से जुड़ी बहुत-सी बातें यहाँ देखने को मिलती हैं। थाईलैंड की थम्मासाट यूनिवर्सिटी के इंडिया स्टडीज सेंटर की निदेशक प्रो. नोंगलुक्साना थिपासवासदी बताते हैं कि थाईलैंड में भी एक अयोध्या है। यही नहीं, यहां श्रीराम के पुत्र लव के नाम पर लवपुरी (लोपबुरी) भी है। थाईलैंड के नागरिकों का यह गहरा विश्वास है कि रामायण की कई घटनाएं उनके अपने देश में घटी थी। थाईलैंड की एक नदी का नाम भी सरयू है। दिलचस्प बात यह है कि भारत की तर्ज पर ही वहां भी सरयू अयोध्या के निकट ही बहती है। वस्तुत: थाईलैंड की सांस्कृतिक जीवनधारा श्रीराम की जीवनदृष्टि में पूर्णत: समाहित है।
चौथा दिन (19.12.11 ) :-
आज हम नाश्ता करने के बाद सुबह-सुबह मंत्रपुरा होटल छोडकर थाईलेंड की राजधानी बैंकाक देखने के लिए रवाना हो गए। थाईलैंड पर्यटन की शुरुआत बैंकाक से होती है। वैसे तो बैंकाक एक रंगीन मिजाज का शहर है, पर यहां कई भव्य बौद्ध मंदिर भी हैं, जिन्हें वाट कहा जाता है। बैंकाक का ग्रैंड पैलेस वास्तव में दर्शनीय है। इसी परिसर में एमरल्ड बौद्ध मंदिर है, जिसमें थाईलैंड की सबसे पवित्र मानी जाने वाली बुद्ध प्रतिमा है। दूसरा वाट अरुण अर्थात सूर्योदय मंदिर भी खास तौर से प्रसिद्ध है। नदी के दूसरे छोर पर स्थित इस मंदिर का वास्तुशिल्प अद्भुत है। किसी टॉवर के समान दिखता इसका ऊंचा शिखर दूर से ही सैलानियों को आकर्षित करता है। हमारे निश्चित कार्यक्रम के अनुसार हमे रास्ते में पड़ने वाले दो मंदिर वाट इन तथा वाट हुयालांपोंग के दर्शन करने थे।
गाइड योयोन योगी के अनुसार
“भगवान बुद्ध के प्रभाव वाले इस देश में राम और बुद्ध के बीच कोई विभाजन रेखा दिखाई ही नहीं देती। इसका सबसे बड़ा प्रमाण बैंकाक स्थित शाही बुद्ध मंदिर है। जिसमें नीलम की मूर्ति है। यह मंदिर थाईलैंड के सुप्रसिद्ध मंदिरों में से एक है तथा दूर-दराज से श्रद्धालु यहां दर्शनार्थ आते हैं। इस मंदिर की दीवारों पर संपूर्ण रामकथा चित्रित है। यही नहीं, थाईलैंड की अपनी स्थानीय रामायण भी है। जिसे ‘रामकियेन’ के नाम से जाना जाता है। इस रामायण के रचियता नरेश राम प्रथम थे। उल्लेखनीय है कि उन्हीं के वंशज आज भी थाईलैंड में शासक हैं। थाईलैंड के विश्व प्रसिद्ध नेशनल म्यूजियम में भी श्रीराम के दर्शन सुगमतापूर्वक किए जा सकते हैं। वहां खड़े धनुर्धारी राम की आकर्षक प्रतिमा आगंतुकों को मंत्रमुग्ध करती है। वहां प्रस्तुत होने वाले शास्त्रीय नृत्यों में भी राम-कथा के अनेक प्रसंग प्रदर्शित किए जाते हैं। यहां रहने वाले भारतीय नागरिकों में भारतीय त्यौहारों के प्रति जितनी आस्था और विश्वास है, वह उनके आयोजनों के माध्यमों से साफ पता चलता है।
बौद्ध मान्यताओं का केंद्र बिंदु करुणा है और थाई जीवन पर इसका अमिट प्रभाव है। पंचशील, त्रिरत्न, कर्मसिद्धांत, गृहस्थी के लिए चार नियम, चार ब्रह्मविहार, समाज में एकता के लिए चार नियम, समस्त जीवन के लिए 38 नियम, इसी प्रकार शासक के लिए नियम या गुण, सम्राट के लिए नियम या गुण तथा मध्य मार्ग आदि इसके उदाहरण हैं। थाईलैंड के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रीदी कासेमसप वहां ऑरिएंटल कल्चरल अकादमी (प्राच्य संस्कृति प्रतिष्ठान) चलाते हैं। महात्मा गांधी एवं गुरुदेव रबीन्द्र नाथ टैगोर के चित्र उनके कक्ष में लगे हैं। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति के आधार स्तंभों, वेद, उपनिषद, गीता, पुराण तथा अन्य शास्त्रों के विधिवत अध्ययन के लिए अकादमी द्वारा चीनी व थाई भाषा के बाद संस्कृत भाषा का पाठ्यक्रम भी शुरू किया गया है।”
पहले-पहल हमें वाट इन मंदिर में ले जाया गया,जहां गौतम बुद्ध की विशालकाय खड़ी मूर्ति अपने आप में आकर्षण का केंद्र थी। तथा मंदिर के अंदर गौतम बुद्ध की ध्यानावस्था में बैठी हुई मूर्ति आध्यात्मिक मुस्कराहट बिखेरती हुई सभी सैलानियों को बरबस अपनी तरफ खींची जा रही थी। समय की कमी की वजह से दूसरे मंदिर का दर्शन नहीं कर पाये। सीधे दोपहर का भोजन लेने के लिए पाँच सितारा होटल फुरोमा में अपना सामान रखकर नजदीक में स्थित भारतीय भोजनालय ‘पंजाबी बाय नेचर’ में हम चले गए। उसके बाद हम लोग शॉपिंग के लिए इन्दिरा मार्केट, पेंटिप प्लाजा मार्केट की ओर रवाना हुए।हमने एक एक्सचेंज शॉप से भारतीय मुद्रा को थाईलेंड की मुद्रा- बाहट में बदलवा दिए। तीस हजार रुपए की जगह हमें मिला पंद्रह हजार बाहट। पहली बार रुपए के कमजोर होने का एहसास हुआ। सरकारी कर नहीं लगने की वजह से यहाँ एलसीडी तथा एलईडी टी.वी.काफी सस्ते थे। हमने भी 32” सैमसंग का एक एलईडी 11500/- बाहट अर्थात् 23000 रुपए में खरीदा, जिसकी भारत में कीमत लगभग 35000 रुपए के आसपास है। इस प्रकार एक एलईडी टीवी पर 12000/- रुपए की बचत हुई। रात्रिभोजन ‘पंजाबी बाय नेचर’ में करने के बाद होटल फुरोमा में लौट आए। मेरे रूममेट परिकल्पना के संपादक,साहित्यकार और ब्लॉगर किंग, रवींद्र प्रभात के साथ साहित्यिक-चर्चा करते-करते पता नहीं कब नींद की आगोश में समा गए।
पांचवा दिन (20.12.11):-
आज नाश्ता करने के बाद हमें मैरीन पार्क तथा सफारी वर्ल्ड देखने जाना था। निश्चित समय पर होटल फुरमा के सामने हमारी बस आ गयी। हम सभी ने अपने हेंड-बेग तथा डिजिटल कैमेरों के साथ बस में प्रवेश किया। मन में मैरीन पार्क के लुभावने दृश्यों को देखने की उत्सुकता जो भरी थी। यहाँ हमने ओरांग-उटांग (एक खास प्रजाति के बंदर) शो, काउ बॉय स्टंट शो, डॉल्फ़िन शो तथा सी-लायन (एक खास प्रकार की मछली) शो देखने का मजा लिया।हमारे लिए आश्चर्य की बात थी कि जो थाई भाषा हम नहीं समझ पाते,वह थाई भाषा, उनके संकेत तथा संगीत की थिरकन पर किस तरह ये दरियाई जानवर न केवल बाल तथा रिंग के माध्यम से करिश्माई करतब दिखा रहे थे, वरन अपने गिल पंख पीटकर अपनी खुशी और जीत का इजहार कर रहे थे। ये सब शो देखने के बाद हमें खुले अजायबघर में ले जाया गया जिसे आधुनिक लोकप्रिय भाषा में सफारी वर्ल्ड कहते हैं। यहाँ बहुत सारे जंगली जानवर शेर,भालू,हिरण,बारहसिंघा,ज़ेबरा तथा तरह-तरह की चिड़ियों को स्वच्छंद घूमते देख आदिकाल के किसी भयानक जंगल की याद आने लगी। यहीं नहीं,ओलिवर के उपन्यास ‘एनिमल फार्म’ की याद मानस पटल पर एक बार फिर तरो-ताजा हो गई।
दिन के अंत में यहाँ के मशहूर पेंटिप प्लाजा शॉप में जाने का पुनः एक सुअवसर प्राप्त हुआ, जहां से हमने आई-फोन, बच्चों के लिए प्ले स्टेशन, घर के लिए कुछ स्मृति चिन्ह तथा कुछ छोटे मोटे आर्टिफेक्ट खरीदे। यहाँ भी भारत की तरह कुछ हद तक बारगेनिंग की जा सकती है।
अंतिम दिन ( 21.12.11) :-
आज हम सभी को इस बात का दुख हो रहा था कि आज हमारा थाईलेंड टूर का अंतिम दिन था। सुबह 10 बजे अपना लगेज पैक करने के बाद हम होटल फुरामा से स्वर्णभूमि एयरपोर्ट की ओर रवाना हुए। लगभग तीन साढ़े तीन घंटे का रास्ता था। इस रास्ते को पार करते समय मैं अपने भारतीय मित्रों, परिजनों तथा संबंधियों को फोन करना नहीं भूल रहा था क्योंकि आज कुछ घंटों बाद थाईलेंड की ‘सिम’ स्थायी रूप से बंद हो जाएगी और मन में यह मलाल बना रहेगा कि विदेश की धरती से उन्हें फोन तक नहीं कर पाया। एयरपोर्ट पर सभी ने ढेरों फोटो खींची,कुछ छिट-पुट खरीददारी भी की। कुछ लोग डयूटी फ्री शॉप से शराब की बोतलें खरीदना नहीं भूलें। हमारी कोलकाता जाने वाली फ्लाइट ने शाम चार बजे थाईलेंड से उड़ान भरी तथा शाम ढलते-ढलते लगभग छ बजे के तकरीबन हम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस अंतर-राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचे। इस यात्रा ने मुझे न केवल एक नया देश देखने का मौका दिया बल्कि भविष्य में स्वतंत्र रूप से सफर करने के लिए आत्मविश्वास की नई लहर भी पैदा की ।
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