15. ॐ ईश्वरी कवि कन्या का ओड़िया-काव्य
‘ॐ ईश्वरी कविकन्या’ के विगत वर्ष हमारे बीच से सड़क दुर्घटना में निधन हो जाने से न केवल ओड़िया साहित्य वरन हिन्दी जगत में रिक्तता पैदा हो गई है,क्योंकि वह समकालीन भारतीय साहित्य की अग्रिम पंक्ति की प्रतिभावान कवयित्री थी।उनके सम्मान में शाश्वती नायक द्वारा हिन्दी में अनूदित तालचेर के स्थानीय कवियों का कविता संग्रह लखनऊ के ई-बुक एवं मुद्रित पुस्तकों के प्रसिद्ध प्रकाशक ऑनलाइन गाथा से प्रकाशित “मेरा तालचेर” समर्पित किया गया था,जिसका सम्पादन मैंने स्वयं किया था। कवि पिता विरंचि महापात्र और माता काननवाला के घर सन 1976 में जन्मी यह कवयित्री गीतकार व दक्ष अनुवादिका भी थी। उनकी कविताओं के कैनवास में पाठकों को हमारी समय के साधारण जनमानस की पीड़ा,दुख,प्रेम, प्रताड़ना,संघर्ष,सपनें और सपनों के टूटने की यंत्रणा,नारी मन का प्रेम और उनके अनकही बातों की एक सुंदर अभिव्यक्ति मिलती है, कोणार्क के अद्वितीय शिल्प तरह उनकी कविताओं,गीतों की रचना,गायन,नारीवादी आलेख,हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत,ओड़िशी संगीत गान में पारंगत होने के साथ एक मंझी हुई उद्घोषिका के रूप में ख्यातिप्राप्त थी। प्रख्यात कवि जयंत महापात्र द्वारा उनकी कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद समकालीन भारतीय साहित्य में प्रकाशित हुआ है।
प्रकाशित कृतियाँ:- कविता-संग्रह ‘अव्ययीभाव’ (2008)
प्रकाश्य कृतियाँ:- जदी लूह रे खोजिन केबे, सरोजिनी नायडू के कविता-संग्रह का अनुवाद “भाँगा बंसी”
सम्मान:- उनके साहित्य अनुष्ठान की ओर से सम्मान एवं संवर्धना। कोयला नगरी एक्स्प्रेस,तालचेर द्वारा ‘कविता सम्मान’, बालेश्वर में सुवर्ण श्री नव प्रतिभा सम्मान। भुवनेश्वर की चलापथ सम्मान। अंगुल की जिला लेखक संस्था द्वारा कवि प्रतिभा सम्मान। कटक में मनस्विनी कविता सम्मान।
इस कवयित्री के विचारधारा से अवगत कराना मेरा एक दायित्व था, क्योंकि उन्होंने मुझे तालचेर में कविता पाठ के लिए मुझे एक ऐसा प्लेटफॉर्म दिया था, जो हिन्दी और ओड़िया भाषा के लिए सेतु बंधन का काम करता था। मैंने उनकी कविताओं को पाँच भागों में वर्गीकृत किया हैं:-
1॰कविता के बारे में कविताएं:-
कविता क्या होती है? कैसे पैदा होती है? कैसे लिखी जाती है?कवि हृदय को झंकृत करने वाली भावनाओं को यथार्थ स्वरूप प्रदान करते हुए वह लिखती है कि कविता केवल शब्द नहीं है,वरन हृदय की जलन,क्रंदन,आँसू,उपेक्षा,संवेदनाओं को शब्दों के सांचें में ढालना ही कविता का दूसरा नाम है। उनकी कविता ‘कवि’ के अंश प्रस्तुत है:-
कुछ शब्दों के संबल
कुछ सपनों के सहारे
कभी एकाकी
सुने प्रहर में
खोखली आत्मीयता और
कभी नीली आग के नशे की
सारी जलन को संभाल लेता हैं
एक हृदयवान कवि अपने सीने में |
सीने के कोरे कागज पर
कलम का क्रंदन
अक्षरों के आंसू
कामनाओं के खिंचाव
भावनाओं की बारिश
और धैर्य के बलात्कार में
बारंबार गर्भवती होती वह
बहू-अपेक्षिता फिर उपेक्षिता
मादा-संतान के
महार्घ मातृत्व की तरह |
2.देश-प्रेम वाली कविताएं:-
कवयित्री देश की परिस्थितियों से भी अपने आपको नहीं बचा पाती है, उन्हें अपने देश की बिगड़ती राजनैतिक,आर्थिक,सामाजिक विद्रूपताओं पर अफसोस होने लगता है, और दिल के किसी कोने में टीस-सी उठने लगती है। उनकी कविता ‘भारतवर्ष’ की इन पंक्तियों में यह बात साफ झलकती है:-
बहुत-कुछ फेंक रहे थे वे लोग ?
पत्थर ,प्रेम
शब्द ,स्वप्न
अहंकार,फूल
मगर निशर्त
सीने पर सहन किया ,
प्यार के भार से
क्रमश: झुकती चली गई
एक बूंद आंसू थोड़ी हंसी
अनुरंजित अभिमान,फिर भी
मेरा भारतवर्ष|
जेहादियों की आगजनी,संत्रासियों का संहार
माओवादियों के वियुक्त मनस्तत्व में
टूटे आहत अस्तित्व को लेकर ,
असमय झरते हुए
पतझड़ का बचा हरा परिवेश, फिर भी
मेरा भारतवर्ष|
किसी गांव की अंधेरी गली में
सुनसान नदी किनारे
राजरास्ते के नियोन उजाले के तले ,
बलात्कृत होने जा रही ,
निर्वस्त्र नारी का
अंतिम थोड़ा-सा धैर्य,फिर भी-
मेरा भारतवर्ष|
प्रणय में,प्रत्याशा में,प्रलय में
व्यथा में,विरह में ,विलय में
ममता में, मैत्री में,मलय में मशगूल
अधपसीजे कवि के हृदय में
अचानक उतरने वाले
वे अधभूले आखिरी शब्द, फिर भी
मेरा भारतवर्ष|
3.नारीवादी कविताएं:-
उनके कविता संग्रह के शीर्षक नाम वाली कविता ‘अव्ययी भाव में नारी के मन की व्यथा को प्रकट किया है कि एक दुखी नारी किसी अनजान अतिथि को अपना साथी बना सकती है,जबकि समाज और परिवेश की सीमाएं ‘लक्ष्मण-रेखा’ के रूप मुंह उठाए खड़ी हो। प्रस्तुत है उनकी कविता ‘अव्ययी भाव’ के कुछ अंश:-
किसी-किसी रात .....
चांद भी कहता होगा मेरी बातें|
सुबह होने पर ....
सूर्य के नरम
उत्ताप आश्लेष से
पिघलती होंगी मेरी स्मृतियां|
नींद आने पर ....
सपनों में भी
तुम्हारा यह साथी
ढूंढता होगा तुम्हें|
मगर, हे अनजान अतिथि!
मुझे साथी बनाने से पहले
जरा सोचो!
जानते हो ना!
बादल भी मना करेंगे बरसने के लिए
फूल भी मना करेंगे खिलने के लिए
चिड़ियां भी भूल जाएंगी चहचहाने के लिए
मेरे एक बूंद
आंसू भरे शब्दों में|
इसी तरह नर-नारी में विभेदता को देखकर पक्षपाती ईश्वर के प्रति भी कवयित्री का मन एक अदृश्य क्षोभ से भर उठता है और वह कहने लगती है मुझे तुम्हारी दया की पात्र नहीं बनना है!! ऐसा क्या अपराध है मेरा कि मुझे सशक्तिकरण की आवश्यकता महसूस हो।नारी जागरण के लिए नारा देना पड़े। नारीवादी कविता में कई स्वरूप मिलेंगे।
अति दया से
थोड़ी-सी जगह मिलती हैं गर्भ में
कभी फिर बस में,नौकरी में
शासन और प्रशासन में |
कभी दया में मिलती हैं
सिर छिपाने की जगह
पुरुष की भुजाओं की छाया तले
कभी नीलाम होता हैं नारीत्व
दहेज की तराजू में |
याद हैं प्रभु
आपने ओढ़ाई थी एक दिन
दया की एक चादर
द्रोपदी के इज्जत के ऊपर |
“दया” “दया” सुनकर
पत्थर बनगई हैं आत्मा |
दया लग रही हैं
दया करके
नारी-जन्म दिया
तुम्हारा इस प्रभुपने पर |
नारी तो तुम्हारी सृष्टि
तुम नारी की सृष्टि
तुम्हारी सृष्टि में......
नारी स्वयं जागृति
उसका फिर जागरण कैसा ?
नारी तो स्वयं शक्ति
फिर उसका
सशक्तिकरण कैसा ?
‘उड़ान’ कविता में साहित्यिक लेखन से ऊपर उठकर छोटी मासूम बच्ची को अधिकारपूर्वक यथार्थ जीवन जीने का आग्रह किया है:- कविता मत लिखो बेटी/थक जाओगी,ठगी जाओगी/शब्दों से बांधा नहीं जा सकता जीवन/बनाया नहीं जा सकता घर/गिरवी रहते हैं जिनकी आँसू/प्रेम,अभिमान और माया का झूठा सच/सारे पल/फिर से छुड़ाने के लिए/यंत्रणा की कसौटी पर/चक्रवृद्धि ब्याज भरना पड़ता है।/जीवन का भी जीवन होता बेटी/जाओ उसे सुरक्षित रखो/काफी नजदीक से,प्रयत्न से/इस जीवन को जीने तक।
4.मानवीय-संबंध को दर्शाती कविताएं:-
‘संबंध’ कविता में कवयित्री सम्बन्धों के कारणों को तलाश करते हुए कहती है कि कभी-कभी अपने पराए लगने लगते है तो कभी-कभी पराए अपने।
कैसे कहूँ/मैं तुम्हारी क्या हूँ?/हाँ,भोग,योग,संभोग से दूर/मोह,लोभ,लांछन से दूर/वाद, विवाद,संवाद से दूर/ऐसे एक/अपनेपन की धरती पर/स्वयं की खोज करना भी तो संबंध है।
जबकि झूठे सपनों की रात में हर आदमी अपने जीवन में सपने देखता है और जब सपने यथार्थ पृष्ठभूमि की कठोरता से टकराकर चूर चूर हो जाते हैं तो मन की क्या अवस्था होती है ? झूठे सपनों की रात जिसनें भी अनुभव की होगी, उस मार्मिक पीड़ा को सहजता से समझा जा सकता है, कवयित्री के इन शब्दों में: -
यादों को कुरेदने से आंसू/प्रीति पिघलने से आँसू/पाप की अर्थी से आँसू/पुण्य की पूर्णता के पश्चात आँसू/हाँ, उन आंसुओं की इमारत के बाद/मैं गढ़ चुका हूँ/मेरी तृप्ति का ताज/तुम मुमताज़ नहीं हो फिर भी/मैं तुम्हारा बेनाम बादशाह/एक झूठे सपने की रात के लिए/ही सही।
5.निरीह जीव हत्या के खिलाफ कविताएं:-
जिस कविता ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया।धर्म के नाम पर ढिंढोरा पीटने वाले लोगों को अपने सच्चे स्वरूप का दर्पण दिखाते हुए ईश्वर के अस्तित्व पर भी कवयित्री प्रश्नवाचक जिन्हें पैदा करती है।भले ही,कविता की पृष्ठभूमि व अंतरभूमि ओड़ीशा की भूमि हो, मगर इसका प्रभाव विश्वव्यापी है निरीह जीव हत्या के खिलाफ कविता ‘छाड़खाई’ के अंश है:-
सारे महीने ढिंढोरा पीटने वाले धर्म से
खोजते हैं
पुण्य की पूर्णता
पाप की लाश को कागज के कंधे पर रख ,
नाव बनाकर , बहाने के बाद मनुष्य
फिर खोजता हैं
कुछ नए पाप |
कल जो लोग
धर्म की लंबी पंक्ति में खड़े थे
मंदिर के सामने
आज उन लोगों का
अभिजात्य खड़ा हैं
कसाईखाने की लंबी कतार में !
किधर गए
वे भिखारी सारे ,
जिनकी अलुमिना की थाली में
एक रुपया देकर
सहज खरीदा जाता हैं सौभाग्य !
ऐसे भी,समय के साथ
बादल जाता हैं सबकुछ ?
तुम नंही बदलोगे ,प्रभु ?
एक बार कह दीजिए
कहाँ, कैसे
कितने प्रतिशत हो ?
इन मरे हुए पत्थरों में जिंदा ?
या जिंदा शरीर में
पत्थर बन गए हो ?
समझ में नंही आ रहा हैं कुछ ;
दोहराए नंही जाते हैं
तुम्हारे पाप-पुण्य की पहाड़े |
अभी लगता हैं जैसे ....
काफी नजदीक से
छूता हैं समुद्र ,
आंगन से दिख रहा हैं स्वर्गद्वार ,
बाड़ी से बाईस सीढ़ियाँ
आगे काला-कलूटा
नरम लोमश शरीर ,
दो असहाय आंखो के भीतर
दिखती हैं तुम्हारी छाया |
हे ! मेरे बकरी के शरीर के
निरीह ईश्वर
तुम्हें नमस्कार !
अगर ॐ ईश्वरी कविकन्या आज जीवित होती तो और ज्यादा मौलिक रचनाएँ आने वाली पीढ़ी को विरासत के रूप में प्राप्त होती,जो भारतीय साहित्य को समृद्ध करती। अगर मैं उनके कार्य को और आगे बढ़ा सकूँ तो वहीं मेरी उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होती।
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