30. अकाईव में सरोजिनी साहू अतीत हमेशा मधुमय होता है। कितना भी पीडादायक और कितना भी संघर्षमय क्यों न रहा हो मगर एक बार अतीत के पन्नों को पलटने पर यह याद आने लगता है कि क्या वास्तव में उन दिनों में इतनी ज्यादा यंत्रणा थी ? इसके अलावा अतीत हमेशा इस तरह याद आता है मानो यह कल की घटना हो। यही तो कल की ही तो बात थी , जब हम किताबों के बैग लादकर स्कूल जाते थे। यही भी तो कल की बात है , जब जगदीश के साथ भेंट हुई। कहानीकार और ' समकाल ' के संपादक शुभ्रांशु पंडा ने जिस समय जगदीश और मेरे सम्बन्धों के बारे में प्रकाशित करने के लिए जब एक आलेख मांगा था , तो उस समय झिझक-सी गई थी। ओड़िया साहित्य में सभी को मालूम है हमारे संबंध के बारे में , फिर इस बात को लेकर लिखने से पाठकों को क्या ऐसा नहीं लगेगा जैसे कि मैं ' क्रेजी ' हूँ ? यद्यपि शुभ्रांशु को मैंने हाँ कह दी थी , मगर इस विषय पर मैं इतना ज्यादा सीरीयस नहीं थी । मैं सोच रही थी कि शुभ्रांशु एक दिन इस बात को भूल जाएगा और मैं अप्रीतिकर परिस्थिति से छुटकारा पा लूंगी। मगर वह इस विषय पर कुछ ज्यादा गंभीर था सही में
साहित्यिक सफर का एक दशक
उनका गाँव और पास में बहने वाली नदी मानो उनके प्रेम का एक सांकेतिक स्वरूप हो,सारी दुनिया का प्राकृतिक वैभव उनके लिए एक विशाल कैनवास बन गया हो। उनके अनुसार साठ साल से कलम रूपी तूलिका से कैनवास का एक छोटा कोना भी अभी तक नहीं भरा गया। प्राकृतिक सुंदरता की नैसर्गिक शोभा की सजीव प्रकृति से परिपूर्ण परिवेश उनके हृदय को अस्थिर करता था और उन्हें सांथाली भाषा से प्रेम हो गया। उन्हें आदिवासियों के जीवन से भी प्रेम हो गया। उस प्रेम से उनके खुले हृदय से गाए गए गीतों में प्राकृतिक माधुर्य भर दिया।